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वि.प्र.
वास्तु पुरुषका मुख जिस दिशामें हो उसी दिशामें स्थानका द्वार शुभदायी होता है ॥ २ ॥ अन्यदिशाके मुखका घर दाख शोकभा . भयका दाता होता है तिससे वास्तुपुरुषके मुखकी दिशाका द्वारही श्रेष्ठ है अन्य दिशाका नहीं ॥ ३ ॥ अब दूसरे प्रकारको कहते हैंकन्या आदि राशियोंपर तीन तीन राशियोंपर सूर्यके स्थित होनेके समय पूर्व आदि दिशामि द्वारको न बनवावे ॥ ४ ॥ अब तीसरे प्रकारको कहते हैं-कर्क और सिंहके सूर्यमें पूर्व और पश्चिममें मुख होता है, मेष और वृश्चिकके सूर्यमें उत्तर दक्षिणमें मुख होता है ॥ ५ ॥
अन्यदिङ्मुखगेहं तु दुःखशोकभयप्रदम् । तस्मात्तदिङ्मुखद्वारं प्रशस्त नान्यदिङ्मुखम् ॥३॥ अथ द्वितीयः॥ त्रिषु त्रिषु च राशीनां कन्यादीनां स्थिते रखो । पूर्वादिषु न कर्तव्यं द्वारं चैव यथाक्रमम् ॥४॥ अथ तृतीयः ॥ कर्ककुम्भगते सूर्य मुखं स्यात् पूर्वपश्चिमे । मेषकीटगते वापि मुखं चोत्तरदक्षिणे ॥५॥ मुखानि चान्यथा कर्तुळधिशोकभयानि च । अन्यराशिगते सूयें न विदध्यात्कदाचन ॥ ६॥ अथ चतुर्थः ॥ सिंहे तु पश्चिमं द्वारं तुलायां चोत्तरं तथा। कर्कटे पूर्वदिग्द्वारं द्वारं पश्चिमवर्जितम् ॥७॥ कर्कटेकै च सिंहस्थे पूर्वद्वारं न शोभनम् । तुलायां वृश्चिके चैव द्वारं पश्चिमवर्जितम् ॥ ८॥ कर्कटेके च सिंहस्थे याम्य द्वारं न शोभनम् । सूर्य मकरकुंभस्थे सौम्यद्वारं च निंदितम् । नृयुकन्याधनुर्मीनसंस्थितेऽके न कारयेत् ॥ ९॥ अन्यथा जो गृहका द्वार बनाता है उसको व्याधि शोक और भय होता है. अन्य राशिके सूर्यमें द्वारको कदाचित् न बनवावे ॥ ६ ॥ अब चौथे प्रकारको कहते हैं-सिंहके सूर्यमें पश्चिम द्वारको, तुलाके सूर्यमें उत्तर मुखके द्वारको, कर्कके सूर्यमें पूर्व दिशाके द्वारको बनवावे, पश्चिम दिशाको छोड़कर द्वार होता है॥७॥ कर्क और सिंहके सूर्यमें पूर्वका द्वार श्रेष्ठ नहीं, तुला और वृश्चिकके सूर्य में पश्चिमदिशाको छोडकर अन्यदिशामें द्वार बनवावे ॥८॥ कर्कके सिंहके सूर्यमें दक्षिणका द्वार शोभन नहीं, मकरके कुंभके सूर्यमें उत्तरका द्वार निन्दित है. मिथुन