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________________ मेरु मन्दर कैलास कुम्भ सिंह और मृग ॥ ८२ ॥ विमानछन्दक और चतुरस्र (चौकोर ) अष्टास्र (अठकोना) और षोडशास्र ( सोलह कोना) वतुल (गोल) सर्वभद्रक ॥ ८३॥ सिंहनन्दन और नन्दिवर्द्धन सिंह वृष सुवर्ण पद्मक और समुद्रक ।। ८४ ॥ ये नामसे कहे हैं.हे द्विजो! इनके विभागको तुम सुनो-शतशृंग हों और चार जिसके द्वारहों भूमिकाके सोलह भागसे ऊंचा हो ॥ ८५ ॥ नानाप्रकारकी जिसकी विचित्र शिखर हों उसको मेरुप्रासाद कहते हैं. जो बारह चौकका हो वा जिसकी बारह शिखर हों उसको मन्दर कहते हैं, जिसमें नौ विमानच्छन्दकस्तद्वच्चतुरस्रस्तथैव च । अष्टासः पोडशास्रश्च वर्तुलः सर्वभद्रकः॥ ८३ ॥ सिंहश्च नन्दनश्चैव नन्दिवर्द्धन एव च । सिंहो वृपः सुवर्णश्च पद्मकोऽथ समुद्रकः ॥८४॥ प्रासादा नामतः प्रोक्ता विभाग शृणुत द्विजाः । शतशृङ्गश्चतुर्दारो भूमिकापोडशो च्छ्रितः ॥ ८५॥ नानाविचित्रशिखरो मेरुप्रासाद उच्यते । मन्दरो द्वादशः प्रोक्तः कैलासो नवभूमिकः ॥८६॥ विमानच्छन्दकं तद्वदनेकशिखरानतः। स चाष्टभूमिकस्तद्वत्सप्तभिनन्दिवर्द्धनः ॥ ८७ ॥ विंशाण्डकसमायुक्तो नन्दनः समुदाहृतः । पोडशा सकसंयुक्तो नानारूपसमन्वितः ॥८८॥ अनेकशिखरस्तद्वत्सर्वतोभद्र उच्यते । चन्द्रशालासमोपेतो विज्ञेयः पञ्चभूमिकः॥८९॥ वलभीच्छन्दकस्तद्वच्छुकनासत्रयान्वितः । वृषस्योच्छ्ायतस्तुल्यो मण्डितश्चित्रवजितः ॥ ९०॥ ९ भूमि हो उसे कैलास कहते हैं ॥ ८६ ॥ अनेक शिखरोंसे जिसका विस्तार हो उसे विमानच्छन्दक कहते हैं और उसकी भूमि ( चौक) आठ होती है. जिसकी सात भूमि हों वह नन्दिवर्द्धन होता है ॥ ८७ ॥ बीस जिसकी कोन समान हों वह नन्दन कहा है. जिसकी सोलह १६ कोनहों और जो नानारूपसे युक्त हो॥८॥ अनेक जिसकी शिखरहों उसको सर्वतोभद्र कहते हैं. और वह चंद्रशालासे युक्त होता है। यू उसकी भूमि पांच होती हैं ॥ ८९ ॥ तिसी प्रकार शुककी (तोताकी) नासिकाके समान जो कोनोंसे युक्तहो और वृषकी ऊँचाईके तुल्य
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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