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________________ |भागके दो गर्भ सूत्र मण्डपके विस्तारमें होते हैं उनका आय विभागके अंशोंसे भद्रसे युक्त और अत्यन्त शोभन होता है, गर्भके मानको पांच भागसे बुद्धिमान् मनुष्य विभाग करके ॥ ६० ॥ उनमसे एकभाग ग्रहण करके बुद्धिमान् मनुष्य प्राग्जीव (द्वार ) की कल्पना कर भागोंमें| | गर्भपके समान उसके आगे मुखमण्डप होता है इस ग्रन्थमें यह प्रासादका सामान्य लक्षण कहा ।। ६१ । इसके अनन्तर और भी लिंग और प्रासादके लक्षणको कहताहूं-लिंग पूजाके प्रमाणसे पीठिका धनवावे ।। ६२ ॥ पीठिकाके आधेभागके प्रमाणसे भित्ति बनवानी और गर्भसूत्रद्वयं भागे विस्तारे मंडपस्य तु । आयस्तस्य विभागांशेर्भद्रयुक्तः सुशोभनः । पञ्चभागेन संभज्य गर्भमानं विचक्षणः ॥६० ॥ भागमेकं गृहीत्वा तु प्राग्जीवं कल्पयेवुधः । गर्भसूत्रसमो भागादग्रतो मुखमण्डपः । एतत्सामान्यमुद्दिष्टं प्रासादस्ये ह लक्षणम् ॥ ६१॥अथान्यच्च प्रवक्ष्यामि प्रासादं लिङ्गमानतः । लिङ्गपूजाप्रमाणन कर्तव्या पीठिका बुधैः ॥६२॥ पीठिकान से भागे स्यात्तन्मानेन तु भित्तयः । बाह्यभित्तिप्रमाणेन उत्सेधस्तु भवेत्ततः ॥६॥ भित्त्युच्छायात्तु द्विगुणः शिखरस्य समुच्छ्यः । शिखरस्य चतुर्भागाः कर्तव्यास्स्युः प्रदक्षिणाः ॥६४॥ प्रदक्षिणायास्तु समस्त्वग्रतो मण्डपो भवेत् । तस्य चार्दैन कर्तव्यस्त्व ग्रतो मुखमण्डपः ॥६५॥ प्रासादान्निर्गतौ कार्यों कपोतो गर्भमानतः । उर्व भित्त्युच्छ्यौ तस्य मञ्जरी तु प्रकल्पयेत् ॥६६॥ बाहरकी भित्तिके प्रमाणसे उंचाई होती है ।। ६३ ॥ भित्तिके ऊंचाईसे दूनी शिखरकी ऊंचाई होती है और शिखरसे चौथे भागोंकी प्रदक्षिणा बनवानी ॥ ६४ ॥ प्रदक्षिणाके समान आगेका मण्डप होता है और उससे आधा अग्रभागमें मुखमण्डप बनवाना ॥ ६५ ॥ प्रासादसे निकसते हुए गर्भके प्रमाणसे दो कपोत बनवाने और वे उपरको भित्ति के समान ऊंचे हों और उनकी मंजरीभी बनवानी ॥६६॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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