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________________ वि. प्र. ॥ ५५ ॥ तेरा स्वरूप है ॥ ५२ ॥ इस प्रासादमें सब कार्यको संपूर्णकर इस मन्त्रसे ईशान में स्थापन करे फिर उसके पीछे घरके स्वामीके शुभकी इच्छा करनेवाला पुरुष शिला और इष्टिकाओंके स्तुतिवाक्योंको पट्टे और बछडा सुवर्ण सहित गौको आचार्य के लिये दे || ५३ ॥ ५४ ॥ अपनी शक्तिके अनुसार ऋत्विज और शिष्टजनोंको दक्षिणा दे और ज्योतिषी और स्थपतिका विशेषकर पूजन करें ॥ ५५ ॥ ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करावे, दीन और अन्धोंको अन्न आदि देकर प्रसन्न करें इस प्रकार वास्तुबलिको करके षोडशभागको लेकर ॥ ५६ ॥ उसके संपूर्ण सर्वमेवात्र प्रासादे कुरु सर्वदा । शिलानामिष्टकानां तु वाचनं तदनन्तरम् ॥ ५३ ॥ न कर्तव्य तु मनसा पितुस्तु शुभ मिच्छता । आचार्याय च गां दद्यात्सवत्सां हेमसंयुताम् ॥ ५४ ॥ ऋत्विग्भ्यो दक्षिणां दद्याच्छिष्टेभ्यश्च स्वशक्तितः । दैवज्ञं पूजयेच्छक्त्या स्थपतिं च विशेषतः ॥ ५५ ॥ ब्राह्मणान् भोजयेच्छक्त्या दीनान्धांश्चैव तोपयेत् । एवं वास्तुवलिं कृत्वा भजेत् षोडशभागिकाम् ॥ ५६ ॥ तस्य मध्ये चतुर्भागं तस्मिन् गर्भं च कारयेत् । भागद्वादशकं सार्द्ध ततस्तु परिकल्पयेत् ॥ ५७ ॥ चतुर्भागेन भित्तीनामुच्छ्रायः स्यात्प्रमाणतः । द्विगुणः शिखरोच्छ्रायो भित्त्युच्छ्रायाञ्च मानतः ॥ ५८ ॥ शिरोर्द्धार्धस्य चार्जेन विधेया तु प्रदक्षिणा | चतुर्दिक्षु तथा ज्ञेयो निर्गमेषु तथा बुधैः ॥ ५९ ॥ | मध्य में चार भागके उसमें गर्भको करे और ॥ १२ ॥ साढेबारह भाग उसके चारोंतरफ कल्पना करे ॥ ५७ ॥ और स्थानके चौथाई भागके प्रमाणसे भित्तियों को ऊंचाईका प्रमाण रक्खे और भित्तियोंकी ऊंचाईसे दुगुना प्रमाण कितनी शिखरोंकी ऊंचाई रक्खे ॥ ५८ ॥ और शिरके आठवें भागसे प्रदक्षिणा बनवानी और चारों दिशाओंमें जो निर्गमके स्थान हैं उनमें वह प्रदक्षिणा जाननी ॥ ५९ ॥ भा. टी. अ ६ ॥ ५५ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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