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________________ करे हे नन्दे ! तू मनुष्योंको सदैव आनन्दकी देनेवाली हे तेरा इस जगह स्थापन करताहूं ॥४५॥ तू इस प्रासादमें जबतक चन्द्रमा और || तारागण हैं तबतक स्थिर रहिये और जिससे तू मनुष्योंको सदेव आयु वांछित फल और लक्ष्मीको देती है ॥ ४६ ॥ इससे तू इस प्रासा दकी रक्षा यत्नसे सदेव रख इनही मन्त्रोंसे फिर आग्नेयीदिशामें उसका स्थापन करे ॥४७॥ फिर उसी प्रकार नाममंत्र ( भद्राये नमः ) से धभद्रा शिलाका पूजन करे और हे भद्रे ! हे कश्यपकी पुत्रि! तू लोकोंको सदा भद्र (कल्याण) कर ॥४८॥ हे देवि ! तू लोकोंको अवस्था प्रासादे तिष्ठ संहृष्टा याव? चन्द्रतारकम् । आयुष्कामं श्रियं नन्दे ददासि त्वं सदा नृणाम् ॥ ४६॥ अस्मिनक्षा त्वया कायाँ प्रासादे यत्नतः सदा । इति मंत्रं समुच्चार्य आग्नेये तु ततः परम् ॥ ४७ ॥ भद्रा संपूजयेत्तद्वन्नाममन्त्रेण पूर्ववत् । भद्रे त्वं सर्वदा भद्र लोकानां कुरु काश्यपि ॥ १८ ॥ आयुष्कामप्रदा देवि लोकानां चैव सिद्धिदा । नैर्ऋत्ये स्थापयेत्तां च जयां तद्वत्प्रपूजयेत् ॥४९॥ नाममन्त्रेण पूर्वोक्तमन्त्रेण च तथा पुनः । ॐ जये त्वं सर्वदा भद्रे सन्तिष्ठ स्थापयाम्यहम् ॥५०॥ नित्यं जयावहा दिव्या स्वामिनः शीघ्रदा भव । वायव्ये स्थापयेत्तां च जयां सर्वार्थसिद्धये ॥५१॥ ईशाने स्थापयेत्पूर्णा पूर्ववत्संप्रपूज्य च । ॐ पूर्णे त्वं तु महाविद्ये सर्वसंदोहलक्षणे ॥५२॥ धू कामना और सिद्धिकी देनेवाली है इस प्रकार मन्त्रको पढकर नेतदिशामें स्थापन करे और उसके अनन्तर तिसी प्रकार जया शिलाका १९ ॥ नाममंत्र और पूर्व कहेहए मन्त्रोंसे नैवेद्य आदिका अर्पण और पूजन करके हे जये ! तू सदा कल्याणरूप है तुझे स्थापन करताहूं। सदा स्थिर रहिये ॥ ५० ॥ अपने स्वामीको सदेव शीघ्र जयके देनवाली हो इस मन्त्रको पढ़कर उस जया नामकी शिलाको सब अथाकी सिद्धिके लिये वायव्यदिशामें स्थापन करे ॥५१॥ पूर्वकी समान पूजन करके हे पूर्णे ! तू महाविद्यारूप है, संपूर्ण कामनाओंको देनेवाला
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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