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भाटी.
अ.६
वि.प्र. नन्दानामकी शिलाका स्थापन करे और पूर्णजलसे अस्त्राय फट इस मन्त्रको पढकर और स्नान कराकर ॥ ३८ ॥ फिर स्नान करके और
मन्त्रसे संमार्जन करके चारोंतरफसे पूर्ण करदे। नन्दायै नमः इस मन्त्रको पढ़ करके गन्ध आदि पूजाकी सामग्रियोंको चढावे ॥ ३९ ॥
गीत धादित्रके शब्द और वेदकी ध्वनिसे युक्त पूर्व और उत्तरको है शिर जिसका ऐसी उस शिलाका शुद्ध होकर स्थापन करे ॥ ४०॥ कि फिर अखके जलको लेकर अस्त्रायफट इसको पढ़कर फिर पूजन करे. सुन्दर रूपवाली सुवर्णकीसी जिसकी कान्ति संपूर्ण आभूषणोंसे
पुनः सात्वाथ मन्त्रेण संमाय॑ परिपूरयेत् । ॐ नन्दायै नमो गन्धाधुपचारान् प्रदापयेत् ॥ ३९ ॥ गीतवादित्रघोषेण वेदध्वनि । युतेन च । प्रागुत्तरशिरस्कां तां स्थापयेत प्रयतः शुचिः॥४०॥ ततोऽवतोयं संगृह्य फडिति पूजयेत्पुनः। दिव्यरूपां सुवर्णाभां सर्वाभरणभूषिताम् । सर्वलक्षणसंपूर्ण परितुष्टां स्मिताननाम् ॥४१॥ ध्यात्वा स्वमंत्रमुच्चार्य प्रणम्य च पुनः पुनः ॥ १२॥
आवाहयेत्ततो नन्दा मन्त्रवैदिकतान्त्रिकैः। संपूजयेत्पुनस्तां च वनगन्धादिनामतः ॥४३॥ धूपयित्वाथ सामान्यमुद्रां बद्धवाथ मंत्रवित् । कल्पयेच्चैव नैवेद्यं दधिमांसादिसंयुतम् ॥ १४ ॥ नन्दाय नम एोहि पूजयेच्छुद्धमानसः। ॐ नन्दे त्वं नन्दिनी पुंसां स्वामत्र स्थापयाम्यहम् ॥४५॥ सुशोभित समस्त उत्तम लक्षणोंसे युक्त प्रसन्नहुई और कुछ हँसतासा है मुख जिसका ॥ ११ ॥ ऐसी उस शिलाका ध्यान करे और उसी| ताशिलाके मंत्रको उच्चारण करके वारम्वार नमस्कार करे ॥ ४२ ॥ फिर वेद और शास्त्रोंके मन्त्रसे नंदानामकी शिलाका आवाहन करे और उसका वन गन्ध आदिसे पूजन करे ॥ ४३ ॥ अष्टगन्ध आदिकी धूपको देकर मन्त्रका जाननेवाला सामान्य मुद्रा (बद्धांजलि ) से दधि मांस आदि सहित नेवेद्यका ॥४४॥ अर्पण करे नन्दानामकी शिलाको नमस्कार हेतू यहां आकर प्राप्त हो २. ऐसा कहकर शुद्धमनसे पूजन