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________________ स्थापनविधिको कहते हैं-शिला हो वा ईट हो चारों लक्षणसे युक्त ॥ १६ ॥ भलीप्रकार मनोहर और समान और चारों तरफसे हाथभर बनवा | कर प्रासादआदिमें विधिसे ॥ १७ ॥ विस्तारके विभाग और बाहुल्यके तुल्य शिला और ईटोंका प्रमाण और लक्षण कहाहे ॥ १८॥ नंदा आदि शिलाओंके अधिष्ठान (नीचे ) की शिला अथवा ईट जाननी और शिलाओंके रूपको जानना और नंदा आदि इष्टका कहीहे ॥ १९॥ संपूर्ण शिलाओंका तल श्रेष्ठ हो और सब चिकनी समान लक्षणोंसे युक्त होयें और सब कुशा और दूर्वासे चिद्वित ध्वजा छत्र चंवरसे युक्त प्रासादादौ विधानेन न्यस्तव्याः सुमनोहराः । चतुरस्राः समाः कृत्वा समन्ताद्धस्तसम्मिताः ॥ १७॥ विस्तारस्य त्रिभागेन बाहु ल्येन सुसमिताः । शिलानामिष्टकानां च प्रमाणं लक्षणं स्मृतम् ॥ १८॥ नन्दाद्यधिष्ठिता ज्ञेया शिला वाप्वथवेष्टका । शिला रूपाण्यथो विद्यानन्दाद्याश्चेष्टकाः स्मृताः ॥ १९ ॥ संपूर्णाः सुतलाः स्निग्धाः सुसमा लक्षणान्विताः । कुशदूर्वाङ्किता धन्याः सध्वजच्छचचामराः॥२०॥ सकुशास्तरणोपेता कूर्ममत्स्यफलान्विताः। इस्तिदर्पणवज्राङ्काः प्रशस्तद्रव्यलाञ्छिताः ॥२१॥ शस्तपक्षिमृगाङ्काश्च वृषाङ्कास्सर्वदा हिताः । स्वस्तिका वेदिकायुक्ता नन्दावर्ताङ्कलाञ्छिताः ॥२२॥ पद्मादिलक्षणोपेताः शिलाः | सर्वार्थसिद्धिदाः । तथा गोवाजिपादाङ्काः शिला धन्याः सुखावहाः ॥२३॥ होय तो धन्य होतीहै ॥ २०॥ कुशाके आस्तरणसे युक्त कर्म मत्स्य और फलसे युक्त और जिनमें हस्ती दर्पण और वज्र इनका चिह्न अथवा श्रेष्ठं द्रव्यका चिह्न हो ॥२१॥ जिनमें श्रेष्ठपक्षी और मृगका चिह हो अथवा वृषका चिह्न हो वे सब कालमें स्थित हैं स्वस्तिक (सधिया) और वेदीसे युक्त और नंदावतके चिरसे युक्त ॥ २२ ॥ पद्मआदि लक्षणोंसे युक्त शिला संपूर्ण अर्थकी सिद्धिको देती हे तिसी प्रकार गो और
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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