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________________ वि. प्र. ॥ ५३ ॥ अश्वके चरणका जिसमें चिह्नहो ऐसी शिला सुखकी दाता होती है ॥ २३ ॥ मांसभक्षक पक्षी मृग इनके चरणोंसे चिह्नित और पक्षियों से चिह्नित दिङ्मुख और बहुत दीन और दर्घि ह्रस्व फटी शिला श्रेष्ठ नहीं होती ॥ २४ ॥ विरुद्धवर्ण फटी और टूटी और लक्ष णोंसे हीन शिला त्यागनेके योग्य है और जिनमें श्रेष्ठ प्राणियांक रूपका वा उत्तम द्रव्यका चिह्न हो || २५ || और जो शास्त्र में उक्त लक्षणोंसे युक्त हो ऐसी शिला सदैव सुखदायी होती है । अत्र संक्षेपसे ईटोंके लक्षणों को सुनो ॥ २६ ॥ जो एक वर्णकी हो और कव्यादमृगपादाङ्का न शस्ताः पक्षिणस्तथा । दिङ्मुखा बहुदीनाश्च दीर्घाी ह्रस्वाः क्षान्विताः ||२४|| विणीः स्फुटिता भग्नाः सन्त्याज्या लक्षणच्युताः । प्रशस्तप्राणिरूपाङ्काः प्रशस्तद्रव्यलाञ्छिताः ॥ २५ ॥ यथोक्तलक्षणोपेताः शिला नित्यं सुखावहाः । इष्टकानां समासेन लक्षणं शृणु साम्प्रतम् ॥ २६ ॥ एकवणीः सुपक्काश्च बहुजीणीश्व वर्जिताः । अप्यङ्गारान्विता नेष्टाः कृष्णवणी सशर्कराः ||२७|| भग्नाश्च विभ्रमैर्हीना वर्जनीयाः प्रयत्नतः । मुप्रमाणा रक्तवर्णाश्चतुरस्रा मनोरमाः ॥ २८ ॥ नन्दाद्या गृहमानेन अड्डुलैः परिकल्पिताः। शिलान्यासः प्रकर्तव्यः प्रासादे तु शिलामये ॥ २९ ॥ इष्टकानां तु विन्यासः प्रासादे चेष्टकामये । तस्याः पीठं प्रकुर्वीत तावदेव प्रमाणतः ॥ ३० ॥ भली प्रकार पकी हो वे श्रेष्ठ होती हैं और जो अत्यंत जीर्ण अर्थात पुरानी वा भुरभुरी हों वे वर्जित हैं और अंगारोंसे युक्त ( जली और कृष्णवर्णकी और कंकरों सहित ईंट श्रेष्ठ नहीं होतीं ॥ २७ ॥ भन विभ्रमसे हीन ( ऊंची नीची ) वे भी यत्नसे वर्जने योग्य हैं और श्रेष्ठप्रमाण सहित रक्तवर्णको चतुरस्र ( चौकोर ) और मनोरम ईट श्रेष्ठ होती हैं ॥ २८ ॥ नंदा आदि शिला गृहके मानके अनु ॐ सार अंगुलोंसे युक्त होनी चाहिये और शिलाओंसे बनेहुए मासाद में शिलाओंका न्यास करना ॥ २९ ॥ ईटोंसे बने हुए प्रासाद में ईटोंका भा. टी. अ. ६ ।। ५३ ।।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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