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ऊपर सदाशिवका ध्यान करके उस कलशके ऊपर पूर्णा आनंदकी दाता पूर्ण नामकी शिलाको रक्खे ॥ २४७ ॥ हे पूर्णे! हे काश्यपि ! तू लोकोंको सदैव पूर्ण कर. हे देवि ! तू आयु कामना और धन सुतकी दाता हो ॥ २४८ ॥ तू गृहकी आधार वास्तुरूप है और वास्तुदीपक से युक्त है, हे जगतप्रिये ! तेरे बिना जगत्का आधार नहीं ॥ २४९ ॥ पूर्णादर्वि इस मन्त्रसे इमं मे देव इस मन्त्रसे ॥ २५० ॥ मूर्द्धानं दिव० इस मन्त्रसे और शांतिके मन्त्र और सहस्रशीर्षा इन १६ मन्त्रोंसे और अग्निमीळे० इस मन्त्रसे ॥ २५१ ॥ इषेत्वार्जे • इस मन्त्रसे अग्र आयाहि पूर्णत्वं सर्वदा पूर्णं लोकानां कुरु काश्यपि । आयुर्दा कामदा देवि धनदा सुतदा तथा ॥ २४८ ॥ गृहाधारा वास्तुमयी वास्तुदीपेन संयुता । त्वामृते नास्ति जगतामाधारश्च जगत्प्रिये ॥ २४९ ॥ पूर्णादवति मन्त्रेण इमं मे देवेति वै तथा ॥ २५० ॥ मूर्द्धानन्दि वेति च तथा शांति मन्त्रैस्तथैव च । सहस्रशीर्षैति षोडशभिरग्निमीळेति वै तथा ॥ २५१ ॥ इषे त्वोर्जेत्यग्र आयाहीति तथा पुनः । शन्नोदेवीति मंत्रेण स्थापयेत्प्रयतः शुचिः ॥ २५२ ॥ मृदादिना दृढीकृत्य प्रादक्षिण्येन सर्वतः । ईशानादिक्रमेणैव स्थाप्या सवार्थसिद्धये ॥ २५३ ॥ आग्नेयी चैव वर्णानामाग्नेयादिक्रमेण च । सर्वेषामपि वर्णानां केचिदिच्छन्ति सुरयः ॥२५४॥ यान्तु देवगणास्सर्वे पूजामादाय पार्थिवीम् । इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च ॥ २५५ ॥
इस मन्त्रसे और वारम्वार शन्नो देवी इस मन्त्रसे शुद्धहुआ यजमान आधारशिलाका स्थापन करे ॥ २५२ ॥ मिट्टी आदिसे दृढकरके प्रदक्षिण रीति संपूर्ण दिशाओंमें ईशान आदिके क्रमसे संपूर्ण अर्थकी सिद्धिके लिये अन्यशिलाओंकाभी स्थापन करे ।। २५३ ॥ कोई पण्डित जन यह मानते हैं सब वर्णोंके मध्यमें आग्नेयी शिलाओंका आग्नेयादि क्रमसे स्थापन करे ॥ २५४ ॥ राजाकी पूजाको लेकर सब