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वि.प्र.
स्थापन करताहूं ॥ २३९ ॥ आधारके उपर शंखनामके कलशको रखकर और कोणमें उसका विधिसे भलीप्रकार पूजनकरके फिर जया नामको
शिलाका भलीप्रकार पूजन करे ॥२४०॥ गर्ग गोत्रमें उत्पन्न त्रिनेत्रा और चतुर्भुजी सुंदरनेत्रवाली जयाका इस प्रासादमें आज में स्थापन करताभा . टी, कहूं ॥ २४१॥ हे भार्गव ! तू सदैव गृहके स्वामीको जय और भूतिके लिये हो, जातवेदसे इस और पूर्वोक्त मन्त्रसे अभिमन्त्रित ॥ २४२ ॥ विजय हा नामके कलशके आधारके ऊपर रखकर फिर मन्त्रका ज्ञाता इस मन्त्रसे रिक्तानामकी शिलाका स्थापन करे ॥ २४३॥ त्र्यम्बकं यजामहे• इससे अ.
आधारोपरि विन्यस्य कलशं शंखसंज्ञकम् । कोणे संपूज्य विधिवजयां संस्थापयेत्ततः॥ २४० ॥ गगंगोत्रसमुद्भूतां त्रिनेत्रां च चतुर्भुजाम् । प्रासादे स्थापयाम्यद्य जयां चारुविलोचनाम् ॥२४॥ नित्यं जयाय भूत्यै च स्वामिनों भव भार्गवि । जातवेदसेति । मंत्रेण पूर्वोक्तेन च मन्त्रतः॥२४२ ॥ आधारोपरि विन्यस्य विजयं कलशं ततः ॥ रिक्तां संस्थापयेत्तत्र मन्त्रेणानेन मन्त्रवित् ॥२४३॥ त्र्यम्बकं यजामहेति तथा वारुणमंत्रकैः। स्थापयेत्प्रार्थयेत्तद्वद्रिक्तां रिक्तार्तिहारणीम् ॥ २४४ ॥ रिक्त त्वं रिक्तदोषघ्ने सिद्धिभुक्तिप्रदे शुभे । सर्वदा सर्वदोपनि तिष्ठास्मिंस्तत्र नन्दिनि॥२४५॥आधारे विन्यसेन्मध्ये सर्वतोभद्रसंज्ञकम् । पूर्णरत्नान्वितं पुष्टं सर्वमंत्राभिमंत्रितम्॥२४६॥तां च सम्पूज्य विधिवद्ध्यात्वा तत्र सदाशिवम्।तत्रोपरि न्यसेत्पूर्णा पूर्णानन्दप्रदायिनीम् ॥२४७॥ और वरुणके मन्त्रसे रिक्ता (खाली) की हरनहारी रिक्ताका स्थापन और प्रार्थना करै ॥ २४४ ॥ हे रिक्त ! रिक्त (खाली) के दोषकी नाशक है और हे शिवे ! सिद्धि और भुक्तिकी दाता है.हे सब दोषोंकी नाशक हे नन्दिनि ! इस स्थानमें तू सर्वदा टिक ॥२४॥ आधारके विषे मध्यमें पूर्ण रत्नों युक्त पुष्ट और संपूर्ण मन्त्रांसे अभिमंत्रित सर्वतोभद्र नामके कलशको रक्खे ॥ २४६ ॥ पूर्णा नामकी शिलाका पूजन करके और उसके