SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो ढके हुए हों जिनमें रत्न पड़ा हुआ हो और जो तेजके समूहसे युक्त हों और सदाशिव के स्वरूपका ध्यान करके पंचोपचारोंसे पूजन कर ।। २३२ ।। बांये भाग में किये हुए गर्तमें दीपकको रखकर उसके ऊपर नन्दानामकी शिलाको रखदे ॥ २३३ ॥ नाभिर्मे० इस मन्त्र और स्थिरो भव० इस वाक्यसे मन्त्रका ज्ञाता तिसके अनंतर शास्त्रोक्त विधिसे प्रार्थना करे ।। २३४ ।। हे नन्दे ! तू पुरुषको आनंद देनेहारी है मैं तेरा यहां स्थापन करता हूं इस प्रासाद में प्रसन्न हुई तबतक टिक, जबतक चन्द्रमा सूर्य तारागण हैं ।। २३५ ॥ हे नन्दिनि ! हे देववासिनि ! आयु कामना और पिहितं रत्नगर्भं च तेजोराशिभिरन्वितम् । सदाशिवस्वरूपी च ध्यात्वा पञ्चोपचारकैः || २३२ || सम्पूज्य दीपं विन्यस्य वाम भागेऽथ गर्तः । तत्रोपरि न्यसेन्नन्दां संपूज्य च यथाविधि ॥ २३३ ॥ नांभिर्मेति च मन्त्रेण स्थिरो भवेति वै तथा । प्रार्थनां च ततः कुर्यादागामोक्तेन मन्त्रवित् ॥ २३४ ॥ नन्दे त्वं नन्दिनी पुंसां त्वामत्र स्थापयाम्यहम् । प्रासादे तिष्ठ संहृष्टा यावच्चन्द्रार्कतारकाः ॥ २३५ ॥ आयुष्कामाञ्छ्रियं देहि देववासिनि नन्दिनि । अस्मिन्रक्षा त्वया कार्या प्रासादे यत्नतो मम ॥ २३६ ॥ महापद्मं न्यसेत्तत्र पूजयेत्नगर्भितम् । तत्र भद्रां च संस्थाप्य पूजयेन्नाम मंत्रकैः ॥ २३७॥ भद्रंकर्णेति ऋचया स्थापयेद्वारुणैस्तथा । भद्रे त्वं सर्वदा भद्रं लोकानां कुरु काश्यपि ॥ २३८ ॥ आयुर्दा कामदा देवि सुखदा च सदा भव । त्वामत्र स्थापयाम्यद्य गृहेऽस्मिन्भद्रदायिनी ॥ २३९ ॥ लक्ष्मीको दे इस मेरे प्रासादमें यत्नसे रक्षा कर ॥ २३६ ॥ उस शिलापर रत्न हैं गर्भमें जिसके ऐसे महापद्मको रक्खे. उस पद्मपर भद्रनामकी शिलाको रखकर नामके मन्त्रोंसे पूजन करे ॥ २३७ ॥ अथवा भद्रंकर्णेभिः ० इस ऋचासे वा वरुणके मन्त्रोंसे स्थापन करे. हे भद्रे ! हे काश्यपि तु सदैव लोकोंमें कल्याण कर ॥ २३८ ॥ हे दोवे ! तू आयु, कामना और सुखकी दाता सदैव हो, हे भद्रके देनेहारी ! तेरा इस घरमें आज १ नाभिने चिनं विज्ञान पायुमैपश्चितिर्भसत् । आनन्दावाण्डौ मे भगस्सौभाग्यंपसः । जङ्घाभ्यां पद्धयां धर्मोस्मि विशिराजाप्रतिष्ठितः ।।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy