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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।
जानना। और तीन प्रदेशी खन्दके विषय उत्कृष्टपनेसे १२ गुण होने सो इसरीतिसे १ वर्ण, और १ रस, यह दो गुण अधिक होय, बाकी द्वै प्रदेशीमें जो गुण कहा हैं उसको मिलायकर तीन प्रदेशवाले खन्द में १२ गुण होय। क्योंकि देखो तीन प्रदेशवाले खन्दमें गन्धतो प्रायः करके दो ही हैं, और फर्स सूक्ष्म परमाणुमेंसे चार ही होय, इसलिये बारह गुण होय। और चार प्रदेशी खन्दके विषय उत्कृष्टसे १४ गुण होय, क्योंकि चार बर्ण, और चार रस, और बाकीके सर्व पूर्व उक्तरीतिसे जान लेना। और पांच प्रदेशी खन्दके विषय ५ वर्ण, ५ रस, २ गन्ध, और चार फर्स, यह सोलह गुण पावे। इसरीतिसे संख्यात प्रदेशी खन्द अथवा असंख्यात प्रदेशी खन्द वा अनन्त प्रदेशी खन्द जितनीवार सूक्ष्म परिणामपने परिणमा होय तितनो बार उन खन्दोंके विषय उत्कृष्ट पनेसे १६ गुण पावे, और जघन्यपनेसे तो पहले जो पांच गुण एक परमाणुके विषय कहा है उतनाही अनन्त प्रदेशी खन्दके विषय पिण होय, इस रीतिसे सूक्ष्म परिणाम वाले परमाणुमें गुण कहें।
अब वादर परिणाम वालेके भी गुण कहते हैं कि जो परमाणु बादर परिणाममें परिणमें उस परमाणुमें जघन्यसे तो सात २ गुण होय, क्योंकि पांचतो जो सूक्ष्म परमाणुमें कहें हैं सो होय और कर्कश वा मृद, गरु वा लघु, इन चार स्पोंमें से अविरोधी दो स्पर्श होय; इसरीतिसे बादर परिणाम वाले परमाणुमें ७ गुण पावे, और उत्कृष्ट पनेसे २० गुण पावे, इसरीतिसे परमाणुमें गुण कहा।
अव इनमें पर्याय भी कहते हैं, कि जैसे एक गुण कृष्ण है तैसे ही एक गुण नीलादिक है, सो एक परमाणुमें सर्वथा जघन्यपने कृष्ण वर्ण होयतो एक गुण काला कहिये, पीछे तिससे बेशी कालास को दूना काला कहिये, इसरीतिसे यावत् संख्यात गुणकाला, संख्यात गुण काला, अथवा अनन्त गुण काला वर्ण होय तो एक काला ही गुण कहे, परन्तु उसमें जो कमती वा बृद्धि, तरतमतासे होना उसका नाम पर्याय जानना, इस रीतिसे रक्त पीतादिके विषय जान लेना।
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