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• द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
(प्रश्न) गुण और पर्यायके विषय में भेद क्या है जो तुम जुदा कहते हो, गुण कहो चाहे पर्याय कहो।
(उत्तर) गुण और पर्यायमें किश्चित भेद है सो ही दिखाते हैं “सहभाविनो गुण" "क्रमभाविनो पर्यायः” अर्थ-सदैव सहभावी होय उसका नाम गुण है, क्योंकि देखो वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श इनकोतो गुण कहना, क्योंकि यह सामान्यपने मूर्तिमंत द्रव्यसे एक देश भिन्न न होय, इसलिये इनको गुण कहा। और जो अनुक्रम करके होय सो सदा सहभावी न होय, इसलिये उसको पर्याय कहा। जैसे एक गुण रक्तादिक होय सो द्वै गुण रक्तादिकको अवस्थाको निरबृती अर्थात् कमती होय, ओर द्वै गुण रक्तादि त्रिगुण अवस्थासे निरवृति होना, इस रीतिसे पूर्व २ अवस्थाको निरवृति अर्थात् नास और उत्तर २ अवस्थाका आविर्भाव अर्थात् उत्पती होना उसका नाम पर्याय है। क्योंकि देखो यह प्रत्यक्ष वनस्पति अथवा सफेद बस्त्र आदिक पर रङ्गादि कमतो बढ़ती दीखता है सो ही दिखाते हैं। जैसे आम, पीपल आदिकका पत्ता, कोंपल आदिक निकलतो है उस वक्तमें सुर्ख दिखती है फिर वह कोंपल क्रम २ करके सुख/तो दूर होती चलो जाती है और नीलादि क्रम २ करके बढ़ती चली जाती है। इसी रीतिसे जो कोई सफेद वस्त्रको लाल करे चाहें तो उस वस्त्रकी क्रम २ अर्थात् थोड़ो २ करके सफेदी तो कम हो जाती हैं और सुखों उसी रोतिसे बढ़तो चलो जातो है यह अनुभव लोकोंमें प्रसिद्ध हैं, इसलिए क्रम भावीसो पर्याय और सहभावो सो गुण, सो इस गुण पर्यायमें किञ्चत भेद है सो कहा।
अब पुद्गलका संस्थान भी कहते हैं कि, एक तो गोल संस्थान, जैसे गोला होता है। दूसरा वर्तुल संस्थान अर्थात् वलय (घेरे) का आकार, (३) लन्बा संस्थान अर्थात् दण्डवत, चौथा समचतुरंश संस्थान अर्थात् अर्ज तूल बराबर, इस रीतिसे संस्थानोंके अनेक मेद है सो अन्य शास्त्रोंसे जानना, इस रीतिसे ६ द्रव्य शास्त्रानुसार सिद्ध किये।
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