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जिससे तुम्हारे समस्त द्रव्य और भाव रोग शान्त हो जायें और तुम्हें सुख प्राप्त हो ॥२१५॥ शृणुतैकं विनयोदितवचनं, नियतायतिहित-रचनम् । रचयत सुकृत-सुख-शतसन्धानं,
शान्त-सुधारसपानं रे ॥ सुजना० ॥ २१६ ॥ अर्थ :- अन्त में अवश्य हित करने वाले विनय के उपलक्षण से (विनय विजयजी म. द्वारा) कहा गया एक वचन तुम सुनो और सैकडों प्रकार से सुकृत तथा अनुपम के जोड़ने वाले शान्त सुधारस का पान करो ॥२१६।।
शांत-सुधारस