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१५. कारुण्य भावना
प्रथममशनपानप्राप्तिवाञ्छाविहस्तास्तदनु वसनवेश्मालङ्कृतिव्यग्रचित्ताः । परिणयनमपत्यावाप्तिमिष्टेन्द्रियार्थान्, सततमभिलषन्तः स्वस्थतां क्वाश्नुवीरन् ॥ २०२ ॥ मालिनी अर्थ :- सर्वप्रथम प्राणी खाने-पीने की लालसा से आकुल-व्याकुल बनते हैं, उसके बाद वे वस्त्र, गृह और अलंकार में व्यग्र चित्त वाले बनते हैं, उसके बाद लग्न, पुत्रपुत्री की प्राप्ति तथा इन्द्रियों के अनुकूल विषयों की सतत् अभिलाषा करते रहते हैं, अतः वे बेचारे किस प्रकार स्वस्थता प्राप्त कर सकते हैं ? ॥२०२॥
उपायानां लक्षैः कथमपि समासाद्य विभवं, भवाभ्यासात्तत्र ध्रुवमिति निबध्नाति हृदयम् । अथाकस्मादस्मिन्विकिरति रजः क्रूरहृदयो,
रिपुर्वा रोगो वा भयमुत जरा मृत्युरथवा ॥ २०३ ॥ शिखरिणी अर्थ :- लाखों उपाय करके महाकष्ट से लक्ष्मी प्राप्त कर 'यह लक्ष्मी सदा रहने वाली है' ऐसा मानकर गत भवों के
शांत-सुधारस
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