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अर्थ :- कई तात्त्विक, सात्त्विक, सज्जन शिरोमणि पुरुष हैं तथा युक्तिपुरःसर विवेचन करने में हंस सदृश लोग हैं, उन दोनों से समस्त जगत् अलंकृत बना है ॥२००॥ इति परगुणपरिभावनसारं, सफलय सततं निजमवतारम् । कुरु सुविहितगुणनिधिगुणगानं, विरचय शान्तसुधारसपानम् ॥ विनय० ॥ २०१॥
अर्थ :- इस प्रकार अन्य के सद्गुणों का अनुमोदन करना यही जिसका सार है, ऐसे मानवभव को प्राप्तकर हे आत्मन् ! तू उसे सदा सफल कर । सदाचार में तल्लीन व सद्गुणों के समुद्र समान ऐसे सत्पुरुषों का गुणगान कर और राग-द्वेषादिक विकारवजित निरामय शान्त सुधारस का पान कर ॥२०१॥
शांत-सुधारस
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