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सर्वतन्त्र-नवनीत-सनातन, सिद्धिसदनसोपान । जय जय विनयवतां प्रतिलम्भित
शान्तसुधारसपान ॥ पालय० ॥१४० ॥ अर्थ :- हे सर्वतन्त्रों में नवनीत समान ! हे सनातन ! हे मुक्ति मंजिल के सोपान ! हे विनयजनों को प्राप्त शान्त अमृतरस के पान ! (हे जिनधर्म) आपकी जय हो ! जय हो !! ॥१४०॥
शांत-सुधारस
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