________________
बारम्बार विनय को ला- लाकर श्रेष्ठ धैर्यरूप विरक्ति के स्वरूप को समझ लो ॥ १०४ ॥
आर्तं रौद्रं ध्यानं मार्जय, दह विकल्प - रचनाऽनायम् । यदियमरुद्धा मानसवीथी,
तत्त्वविदः पन्था नाऽयम् ॥ शृणु० ॥ १०५ ॥ अर्थ :- आर्त और रौद्रध्यान ( की गंदगी) को साफ कर दो, विकल्प - कल्पना के जाल को जला डालो । क्योंकि अनिरुद्ध मानसिक मार्ग तत्त्वज्ञानियों का मार्ग नहीं है ॥ १०५ ॥ संयम-योगैरवहितमानस - शुद्ध्या चरितार्थय कायम् । नाना - मत - रुचि - गहने भुवने,
निश्चिनु शुद्ध-पथं नायम् ॥ शृणु० ॥ १०६ ॥ अर्थ :- निर्मल मानसिक शुद्धि के साथ संयम योगों के द्वारा काया को चरितार्थ करो । नाना प्रकार के मत-मतान्तरों की रुचि से अत्यन्त गहन इस संसार में न्यायपूर्वक जो शुद्ध पथ है, उसका निश्चय करो ॥१०६॥
ब्रह्मव्रत- मङ्गीकुरु विमलं, बिभ्राणं गुण - समवायम् । उदितं गुरुवदनादुपदेशं, संगृहाण शुचिमिव रायम् शृणु । १०७ । अर्थ :- अनेक गुणों के समुदाय रूप निर्मल ब्रह्मचर्य व्रत को अंगीकार करो । गुरु के मुख से निकले अत्यन्त पवित्र रत्न के निधानरूप उपदेशों का संग्रह करो ॥१०७॥
शांत-सुधारस
४३