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संयम-वाड्मय-कुसुमरसैरिति-सुरभय निजमध्यवसायम् ।
चेतनमुपलक्षय कृत- लक्षण -
ज्ञान-चरण-गुण-पर्यायम् ॥ शृणु ॥ १०८ ॥
अर्थ :- संयम और शास्त्ररूप पुष्पों से अपने अध्यवसायों को सुगंधित करो और ज्ञान - चारित्ररूप गुण और पर्याय वाले चेतन के स्वरूप को भलीभांती समझ लो ॥१०८॥
वदनमलं कुरु पावनरसनं, जिनचरितं गायं गायम् । सविनय- शान्तसुधारसमेनं, चिरं नन्द पायं पायम् । शृणु । १०९ ।
अर्थ :- जिनेश्वर के चरित्रों का पुन:- पुनः गान करके रसना को पावन करो और वदन को अलंकृत करो। इस शान्त सुधारस का बारम्बार पानकर दीर्घकाल तक आनन्द करो ॥ १०९ ॥
शांत-सुधारस
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