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कल्पसूत्रं कल्पलता व्या०९
द्वादशी सामाचारी
॥२५२॥
अथ वृष्टौ सत्यां जिनकल्पिकानां आहारग्रहणविधिरूपांद्वादशमी सामाचारी आह,वासावासं पजोसवियस्स नो कप्पड पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खस्स कणगासियमितमवि वष्ट्रिकायंसि निवयमाणंसि जाव गाहातइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ २८ ॥ वासावासं पजोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्त नो कप्पइ अगिहसि पिंडवायं पडिगाहित्ता पजोसवित्तए, पज्जोसवेमाणस्स सहसा बुट्टिकाए निवइजा देसं भुच्चा देसमादाय से पाणिणा पाणिं परिपिहिता उरंसि वा णं निलिजिजा, कक्खंसि वा गं समाहडिज्जा अहाछन्नाणि वा लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिंसि दए वा दगरए वा दगफुसिआ वा नो परिआवजह ॥ २९॥ वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणगफुसियमितंपि निवडति, नो से कप्पड़ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३०॥ (१२) व्याख्या-"वासावासं" वर्षाकाले स्थितस्य "पाणिपडिग्गहियस्स ति" जिनकल्पिकादेभिक्षोः “कणग
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