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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र कल्पलता व्या० ९ ॥ २४२ ॥ www.kobatirth.org तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विक्कते वासावासं पोइ ॥ १ ॥ से केणद्वेगं भंते ! एवं बुच्चइ - 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइरा मासे विकते वासावासं पज्जोसवेइ ?' जओ णं पाएणं अगारीणं अगाराई कडियाई उक्कंपियाई छन्नाई लित्ताई गुत्ताई घट्टाई मट्ठाई संपधूमियाई खाओदगाई खायनि मणाई roat अट्ठा कडाई परिभुत्ता परिणामियाइं भवंति से तेणट्टेणं एवं बुच्चइ - 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे त्रिइकंते वासावासं पज्जोसवेइ' ॥ २ ॥ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसवेइ तहा णं गणहरावि वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसविंति ॥ ३ ॥ जहा णं गणहरा वासाणं सवीसइराए जाव पज्जोसविंति तहा णं गणहरसीसावि वासाणं जाव पज्जोसविंति ॥ ४ ॥ जहा णं गणहरसीसा वासाणं जाव पज्जोसविंति तहा णं थेरावि वासावासं पजोसविंति ॥५॥ जहा णं थेरा वासाणं जाव पज्जोसविंति तहा णं जे इमे अजत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XaXXX · X · प्रथमा सामाचारी ॥ २४२ ॥
SR No.034110
Book TitleKalpasutra Kalpalati Tika
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSamaysundar Gani,
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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