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प्रमाद-निन्दा
विषयोंकी प्रवृत्तिसे मनुष्य आत्मस्वरूपसे गिर जाता है और जो एक बार स्वरूपसे गिर गया, उसका निरन्तर अध:पतन होता रहता है तथा पतित पुरुषका नाशके सिवा फिर उत्थान तो प्राय: कभी देखा नहीं जाता है। इसलिये सम्पूर्ण अनर्थोंके कारणरूप संकल्पको त्याग देना चाहिये। अतः प्रमादान्न परोऽस्ति मृत्यु
विवेकिनो ब्रह्मविदः समाधौ। समाहितः सिद्धिमुपैति सम्यक्
समाहितात्मा भव सावधानः॥३२९॥ इसलिये विवेकी और ब्रह्मवेत्ता पुरुषके लिये समाधिमें प्रमाद करनेसे बढ़कर और कोई मृत्यु नहीं है। समाहित पुरुष ही पूर्ण आत्म-सिद्धि प्राप्त कर सकता है; इसलिये सावधानतापूर्वक चित्तको समाहित (स्थिर) करो।