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विवेक-चूडामणि
जो अनपररूपसे [ अर्थात् जिससे परे और कोई न हो इस प्रकार ] प्रकाशमान है, पर (अव्यक्त प्रकृति)-से भी परे है, प्रत्यक्, एकरस और सबका अन्तरात्मा है तथा सच्चिदानन्दस्वरूप, अनन्त और अव्यय है वह ब्रह्म ही तुम हो-ऐसी अपने अन्त:करणमें भावना करो। उक्तमर्थमिममात्मनि स्वयं
भावय प्रथितयुक्तिभिर्धिया। संशयादिरहितं कराम्बुवत्
तेन तत्त्वनिगमो भविष्यति ॥ २६५॥ इस पूर्वोक्त विषयको अपनी बुद्धिसे [ वेदान्तकी ] प्रसिद्ध युक्तियोंद्वारा अपने चित्तमें स्वयं विचारो। इससे हस्तगत जलके समान संशय-विपर्ययसे रहित तत्त्वबोध हो जायगा। स्वं बोधमानं परिशुद्धतत्त्वं
विज्ञाय सङ्के नृपवच्च सैन्ये। तदात्मनैवात्मनि सर्वदा स्थितो
विलापय ब्रह्मणि दृश्यजातम्॥२६६॥ सेनाके बीचमें रहनेवाले राजाके समान भूतोंके संघातरूप शरीरके मध्यमें स्थित इस स्वयंप्रकाशस्वरूप विशुद्ध तत्त्वको जानकर सदा तन्मयभावसे स्वस्वरूपमें स्थित रहते हुए सम्पूर्ण दृश्यवर्गको उस ब्रह्ममें ही लीन करो। बुद्धौ गुहायां सदसद्विलक्षणं
ब्रह्मास्ति सत्यं परमद्वितीयम्। तदात्मना योऽत्र वसेद्गुहायां
पुमर्न तस्याङ्गगुहाप्रवेशः॥ २६७॥ वह सत्-असत्से विलक्षण अद्वितीय सत्य परब्रह्म बुद्धिरूप गुहामें विराजमान है। जो इस गुहामें उससे एकरूप होकर रहता है, हे वत्स! उसका फिर शरीररूपी कन्दरामें प्रवेश नहीं होता [अर्थात् वह फिर जन्म ग्रहण नहीं करता] ।