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अन्नमय कोश
प्रकार तेरी कभी आत्मबुद्धि नहीं होती, उसी प्रकार जीवित शरीरमें भी
कभी न होनी चाहिये ।
देहात्मधीरेव
नृणामसिद्ध्यां जन्मादिदुःखप्रभवस्य यतस्ततस्त्वं जहि तां प्रयत्ना
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बीजम् ।
त्यक्ते तु चित्ते न पुनर्भवाशा ॥ १६६ ॥
क्योंकि देहात्म- बुद्धि ही असद्बुद्धि मनुष्योंके जन्मादि दुःखोंकी उत्पत्तिकी कारण है, अतः उसे तू प्रयत्नपूर्वक छोड़ दे, उस बुद्धिके छूट जानेपर फिर पुनर्जन्मकी कोई आशंका न रहेगी।
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