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आवरणशक्ति और विक्षेपशक्ति
विक्षेप नामवाली अति प्रबल शक्ति काम-क्रोधादि अपने बन्धनकारी गुणोंसे इसको व्यथित करने लगती है। महामोहग्राहग्रसनगलितात्मावगमनो
धियो नानावस्थाः स्वयमभिनयस्तद्गुणतया। अपारे संसारे विषयविषपूरे जलनिधौ
निमग्योन्मज्यायं भ्रमति कुमतिः कुत्सितगतिः॥१४३॥ तब यह नाना प्रकारको नीच गतियोंवाला कुमति जीव विषयरूपी विषसे भरे हुए इस अपार संसार-समुद्रमें डूबता-उछलता महामोहरूप ग्राहके पंजेमें पड़कर आत्मज्ञानके नष्ट हो जानेसे बुद्धिके गुणोंका अभिमानी होकर उसकी नाना अवस्थाओंका अभिनय (नाट्य) करता हुआ भ्रमता रहता है। भानुप्रभासञ्जनिताभ्रपङ्क्ति
र्भानुं तिरोधाय विजृम्भते यथा। आत्मोदिताहङ्कृतिरात्मतत्त्वं
तथा तिरोधाय विजृम्भते स्वयम्॥१४४॥ जिस प्रकार सूर्यके तेजसे उत्पन्न हुई मेघमाला सूर्यहीको ढंककर स्वयं फैल जाती है, उसी प्रकार आत्मासे प्रकट हुआ अहंकार आत्माको ही आच्छादित करके स्वयं स्थित हो जाता है।
आवरणशक्ति और विक्षेपशक्ति कवलितदिननाथे दुर्दिने सान्द्रमेधै__wथयति हिमझञ्झावायुरुग्रो यथैतान्। अविरततमसात्मन्यावृते मूडबुद्धिं
क्षपयति बहुदुःखैस्तीवविक्षेपशक्तिः॥१४५॥ जिस प्रकार किसी दुर्दिनमें (जिस दिन आँधी, मेघ आदिका विशेष उत्पात हो) सघन मेघोंके द्वारा सूर्यदेवके आच्छादित होनेपर अति भयंकर