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तमोगुण
रजोगुण विक्षेपशक्ती रजसः क्रियात्मिका
यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी। रागादयोऽस्याः प्रभवन्ति नित्यं
दुःखादयो ये मनसोविकाराः॥११३॥ क्रियारूपा विक्षेपशक्ति रजोगुणकी है जिससे सनातनकालसे समस्त क्रियाएँ होती आयी हैं और जिससे रागादि और दुःखादि, जो मनके विकार हैं, सदा उत्पन्न होते हैं। कामः क्रोधो लोभदम्भाद्यसूया
हङ्कारेामत्सराद्यास्तु घोराः। धर्मा एते राजसाः पुम्प्रवृत्ति
यस्मादेषा तद्रजो बन्धहेतुः॥११४॥ काम, क्रोध, लोभ, दम्भ, असूया (गुणोंमें दोष ढूँढ़ना), अभिमान, ईर्ष्या और मत्सर-ये घोर धर्म रजोगुणके ही हैं। अत: जिसके कारण जीव कर्मों में प्रवृत्त होता है वह रजोगुण ही उसके बन्धनका हेतु है।
तमोगुण एषावृतिर्नाम तमोगुणस्य
शक्तिर्यया वस्त्ववभासतेऽन्यथा। सैषा निदानं पुरुषस्य संसृते
विक्षेपशक्तेः प्रसरस्य हेतुः॥११५॥ जिसके कारण वस्तु कुछ-की-कुछ प्रतीत होने लगती है वह तमोगुणको आवरणशक्ति है। यही पुरुषके (जन्म-मरण-रूप) संसारका आदि-कारण है और यही विक्षेपशक्तिके प्रसारका भी हेतु है। प्रज्ञावानपि पण्डितोऽपि चतुरोऽप्यत्यन्तसूक्ष्मार्थदृक् व्यालीढस्तमसा न वेत्ति बहुधा सम्बोधितोऽपि स्फुटम्। भ्रान्त्यारोपितमेव साधु कलयत्यालम्बते तद्गुणान् हन्तासौ प्रबला दुरन्ततमसः शक्तिर्महत्यावृतिः॥११६॥
133 विवेक-चूडामणि-2A