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विवेक-चूडामणि
तमसे ग्रस्त हुआ पुरुष अति बुद्धिमान्, विद्वान्, चतुर और शास्त्र के अत्यन्त सूक्ष्म अर्थोंको देखनेवाला भी हो तो भी वह नाना प्रकार समझानेसे भी अच्छी तरह नहीं समझता; वह भ्रमसे आरोपित किये हुए पदार्थोंको ही सत्य समझता है और उन्हींके गुणोंका आश्रय लेता है। अहो ! दुरन्त तमोगुणकी यह महती आवरण-शक्ति बड़ी ही प्रबल है।
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अभावना वा
विपरीतभावना
विप्रतिपत्तिरस्याः ।
संसर्गयुक्तं न विमुञ्चति ध्रुवं विक्षेपशक्ति: क्षपयत्यजस्त्रम् ॥ ११७ ॥
सम्भावना
इस आवरणशक्तिके संसर्गसे युक्त पुरुषको अभावना, विपरीतभावना, असम्भावना और विप्रतिपत्ति- ये तमोगुणकी शक्तियाँ नहीं छोड़तीं और विक्षेपशक्ति भी उसे निरन्तर डावाँडोल ही रखती है। *
अज्ञानमालस्यजडत्वनिद्रा
प्रमादमूढत्वमुखास्तमोगुणाः
एतैः प्रयुक्तो न हि वेत्ति किञ्चिनिद्रालुवत्स्तम्भवदेव तिष्ठति ॥ ११८ ॥
अज्ञान, आलस्य, जडता, निद्रा, प्रमाद, मूढता आदि तमके गुण हैं। इनसे युक्त हुआ पुरुष कुछ नहीं समझता; वह निद्रालु या स्तम्भके समान [जडवत् ] 'रहता है।
• 'ब्रह्म नहीं है जिससे ऐसा ज्ञान हो वह 'अभावना' कहलाती है। 'मैं शरीर हूँ' यह 'विपरीतभावना' है। किसीके होनेमें सन्देह 'असम्भावना' है और 'है या नहीं' इस तरहके संशयको 'विप्रतिपत्ति' कहते हैं। 'प्रपंचका व्यवहार' ही मायाकी 'विक्षेपशक्ति' है।
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