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विवेक-चूडामणि
है। इस विषयमें श्रुति, प्रत्यक्ष, ऐतिह्य (इतिहास) और अनुमान प्रमाण
जागृत ( मौजूद हैं।
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माया- निरूपण
परमेशशक्तिरनाद्यविद्या त्रिगुणात्मिका परा । सुधियैव
माया
अव्यक्तनाम्नी
कार्यानुमेया
यया जगत्सर्वमिदं प्रसूयते ॥ ११० ॥
जो अव्यक्त नामवाली त्रिगुणात्मिका अनादि अविद्या परमेश्वरकी परा शक्ति है, वही माया है; जिससे यह सारा जगत् उत्पन्न हुआ है। बुद्धिमान्, जन इसके कार्यसे ही इसका अनुमान करते हैं ।
सन्नाप्यसन्नाप्युभयात्मिका
नो
भिन्नाप्यभिन्नाप्युभयात्मिका नो
सङ्गाप्यनङ्गाप्युभयात्मिका
नो
महाद्भुतानिर्वचनीयरूपा
॥ १११ ॥
वह न सत् है, न असत् है और न [ सदसत् ] उभयरूप है; न भिन्न हैं, न अभिन्न है और न [ भिन्नाभिन्न ] उभयरूप है; न अंगसहित है, न अंगरहित है और न [ सांगानंग ] उभयात्मिका ही है; किन्तु अत्यन्त अद्भुत और अनिर्वचनीयरूपा (जो कही न जा सके ऐसी) है।
शुद्धाद्वयब्रह्मविबोधनाश्या
सर्पभ्रमो रज्जुविवेकतो यथा ।
रजस्तमः सत्त्वमिति प्रसिद्धा
गुणास्तदीयाः प्रथितैः स्वकार्यैः ॥ ११२ ॥
रज्जुके ज्ञानसे सर्प - भ्रमके समान वह अद्वितीय शुद्ध ब्रह्मके ज्ञानसे
ही नष्ट होनेवाली है। अपने-अपने प्रसिद्ध कार्योंके कारण सत्त्व, रज और तम-ये उसके तीन गुण प्रसिद्ध हैं ।