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विवेक-चूडामणि
जो मूढ इन विषयोंमें रागरूपी सुदृढ़ एवं विस्तृत बन्धनसे बँध जाते हैं, वे अपने कर्मरूपी दूतके द्वारा वेगसे प्रेरित होकर अनेक उत्तमाधम योनियोंमें आते-जाते हैं।
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विषय - निन्दा
शब्दादिभिः पञ्चभिरेव
पंच
पञ्चत्वमापुः स्वगुणेन बद्धाः ।
कुरङ्गमातङ्गपतङ्गमीन
भृङ्गा नरः पञ्चभिरञ्चितः किम् ॥ ७८ ॥ अपने-अपने स्वभावके अनुसार शब्दादि पाँच विषयोंमेंसे केवल एक - एकसे बँधे हुए हरिण, हाथी, पतंग, मछली और भरे मृत्युको प्राप्त होते हैं, फिर इन पाँचोंसे जकड़ा हुआ मनुष्य कैसे बच सकता है? दोषेण तीव्रो विषयः कृष्णसर्पविषादपि ।
विषं निहन्ति भोक्तारं द्रष्टारं चक्षुषाप्ययम् ॥ ७९ ॥ दोषमें विषय काले सर्पके विषसे भी अधिक तीव्र है, क्योंकि विष तो खानेवालेको ही मारता है, परन्तु विषय तो आँखसे देखनेवालेको भी नहीं छोड़ते ।
आशाग्रहो
विषयाशामहापाशाद्यो विमुक्तः सुदुस्त्यजात् ।
स एव कल्पते मुक्त्यै नान्यः षट्शास्त्रवेद्यपि ॥ ८० ॥ जो विषयोंकी आशारूप कठिन बन्धनसे छूटा हुआ है वही मोक्षका भागी होता है और कोई नहीं; चाहे वह छहों दर्शनोंका ज्ञाता क्यों न हो।
आपातवैराग्यवतो
मुमुक्षून् प्रतियातुमुद्यतान् ।
भवाब्धिपारं मज्जयते ऽन्तराले
विगृह्य कण्ठे विनिवर्त्य वेगात् ॥ ८१ ॥
संसार सागरको पार करने के लिये उद्यत हुए क्षणिक वैराग्यवाले मुमुक्षुओंको आशारूपी ग्राह अति वेगसे बीचहीमें रोककर गला पकड़कर डुबो देता है।