________________ 156 विवेक-चूडामणि महापापा साधनाकी दृष्टिसे भगवत्कृपाके द्वारा मोक्षकी इच्छा और तदर्थ प्रयत्न और सत्संगकी प्राप्ति ये तीन दुर्लभ वस्तुएँ हैं। इनसे विवेककी प्राप्ति होकर जीवन्मुक्तिकी उपलब्धि होती है। आचार्यका वचन है दुर्लभं त्रयमेवैतद् देवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः॥ (वि०चू०म०३) गोस्वामी तुलसीदासजीकी रचनाओंपर इनका स्पष्ट प्रभाव दीखता हैबिनु सत्संग बिबेक न होई / राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ बिनु सत्संग भगति नहिं होई / ते तब मिलहिं द्रवै जब सोई॥ सत्संगति मुद मंगल मूला / सोइ फल सिधि सब साधन फूला // बड़े भाग मानुष तन पावा / सुर दर्लभ पुरान श्रति गावा॥ बड़े भाग पाइअ सत्संगा / बिनहिं प्रयास होइ भव भंगा।। लगता तो यहाँतक है कि-'वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्' इत्यादिमें निदर्शनालंकारसे गोस्वामीजीने शंकरावतार शंकराचार्यकी ही वन्दना की है और उनके समग्र साहित्यपर आचार्यका महान् प्रभाव है और इन्हीं कारणोंसे भाषा हिन्दी होने, भाव गम्भीर होनेके कारण मानसका विश्वमें सर्वाधिक प्रचार हो गया। विवेक-चूडामणिमें नित्य-समाधिके लिये वैराग्यको ही सर्वोत्कृष्ट साधन माना गया है। आचार्य कहते हैं-'अत्यन्तवैराग्यवत: समाधिः' अर्थात् अत्यन्त विरक्तको तत्काल समाधि सिद्ध होती है। गीतामें भी यही भाव व्यक्त हुआ है। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च॥ श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि॥ (गीता 2 / 52-53) विवेक-चूडामणिकी सारी उपयोगिताओंको हृदयंगम करनेके लिये ग्रन्थका पर्यावलोकन आवश्यक है। उसे शनैः-शनै: आप रसपूर्वक मनन करते हुए पूरा लाभ उठायें। यही निवेदन है।