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प्रश्न-निरूपण
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श्रद्धा, भक्ति, ध्यान और योग इनको भगवती श्रुति मुमुक्षुकी मुक्तिके साक्षात् हेतु बतलाती है। जो इन्हींमें स्थित हो जाता है उसका अविद्याकल्पित देह-बन्धनसे मोक्ष हो जाता है। अज्ञानयोगात्परमात्मनस्तव
ह्यनात्मबन्धस्तत एव संसृतिः। तयोर्विवेकोदितबोधवलि
रज्ञानकार्यं प्रदहेत्समूलम्॥४९॥ तुझ परमात्माका अनात्म-बन्धन अज्ञानके कारण ही है और उसीसे तुझको [जन्म-मरणरूप] संसार प्राप्त हुआ है। अत: उन (आत्मा और अनात्मा) के विवेकसे उत्पन्न हुआ बोधरूप अग्नि अज्ञानके कार्यरूप संसारको मूलसहित भस्म कर देगा।
प्रश्न-निरूपण
शिष्य उवाच कृपया श्रूयतां स्वामिन्प्रश्नोऽयं क्रियते मया। तदुत्तरमहं श्रुत्वा कृतार्थः स्यां भवन्मुखात्॥५०॥
शिष्य-हे स्वामिन् ! कृपया सुनिये; मैं यह प्रश्न करता हूँ। उसका उत्तर आपके श्रीमुखसे सुनकर मैं कृतार्थ हो जाऊँगा। को नाम बन्धः कथमेष आगतः .
कथं प्रतिष्ठास्य कथं विमोक्षः। कोऽसावनात्मा परमः क आत्मा
तयोविवेकः कथमेतदुच्यताम्॥५१॥ बन्ध क्या है? यह कैसे हुआ? इसकी स्थिति कैसे है? और इससे मोक्ष कैसे मिल सकता है? अनात्मा क्या है? परमात्मा किसे कहते हैं? और उनका विवेक (पार्थक्य-ज्ञान) कैसे होता है? कृपया यह सब कहिये।