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________________ ४३ अनु० ७ ] शाङ्करभाष्यार्थ आकाश आत्मा । इत्यधिभूतम् । अथाध्यात्मम् । प्राणो व्यानोऽपान उदानः समानः । चक्षुः श्रोत्रं मनो वाक् त्वक् । चर्म माँस स्त्रावास्थि मज्जा । एतदधिविधाय ऋषिरवोचत् । पाङङ्क्तं वा इद सर्वम् | पाङतेनैव । पाङ्क्त स्पृणोतीति ॥ १ ॥ पृथिवी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाएँ और अवान्तर दिशाएँ [- यह लोकपाङ्क्त ]; अग्नि, वायु, आदित्य, चन्द्रमा और नक्षत्र [ - यह देवतापाङ्क्त ] तथा आप, ओषधि, वनस्पति, आकाश और आत्मा - ये अधिभूतपाङ्क्त हैं । अत्र अध्यात्मपाङ्क्त वतलाते हैं--प्राण, व्यान, अपान, उदान और समान [ - यह वायुपाक्त ]; चक्षु, श्रोत्र, मन, वाक् और त्वचा [ यह इन्द्रियपाङ्क्त ] तथा चर्म, मांस, स्नायु, अस्थि और मज्जा [-यह धातुपात — ये सब मिलाकर अध्यात्मपाङ्क्त हैं ] | इस प्रकारं पाङ्क्तोपासनाका विधानकर ऋषिने कहा - 'यह सब पाङ्क्त ही है; इस [ आध्यात्मिक ] पाक्तसे ही उपासक [ बाह्य ] पाङ्क्तको पूर्ण } करता है ॥ १ ॥ पृथिव्यन्तरिक्षं द्यौर्दिशोऽवा पृथिवी, अन्तरिक्ष, लोक, त्रिविध न्तरदिश इति लो - | दिशाएँ और अवान्तर दिशाएँ- ये भूतपाङ्कम् कपाङ्क्तम् । अग्नि- लोकपाङ्क्त हैं, अग्नि, वायु, आदित्य, चन्द्रमा और नक्षत्र - देवतापाङ्क्त र्वायुरादित्यचन्द्रमा नक्षत्राणीति हैं; जल, ओषधि, वनस्पति, आकाश देवतापाङ्क्तम् । आप ओषधयो और आत्मा-ये भूतपाङ्क्त हैं । यहाँ वनस्पतय आकाश आत्मेति | 'आत्मा' विराट्को कहा है, क्योंकि भूतपाङ्क्तम् । आत्मेति विराड् | यह भूतोंका अधिकरण है। 'इत्यधिभूताधिकारात् । इत्यधिभूतमि | भूतम्' यह वाक्य अधिलोक और
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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