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________________ अनु०१] शाङ्करभाष्यार्थ (तै० उ० २।४।१) "अ- न पाकर लौट आती है" "न कहने निरुक्तेऽनिलयने" (ते. उ०२। योग्य और अनाप्रितमीमदत्यादि श्रुतियों के अनुसार ब्रह्मका सत्यादि ७।१) इति चावाच्यत्वं । ल, शब्दोंका अवाच्यत्य और नीलनीलोत्पलवदवाक्यार्थत्वं च कमलके समान अवाक्यार्थत्व सिद्ध ब्रह्मणः। होता है ।* तद्यथाव्याख्यातं ब्रह्म यो वेद उपर्युक्त प्रकारसे व्याख्या किये । हुए उस ब्रह्मको जो पुरुप गुहामें गाशब्दार्थ- विजानाति नाहित निहित । छिपा हुआ) जानता निर्वचनम् स्थितं गुहायाम् । है । संवरण अर्थात् आच्छादन अर्थगृहतेः संवरणार्थस्य निगूढा वाले 'गुह्' धातुसे 'गुहा' शब्द निप्पन्न होता है। इस (गुहा) में अस्यां ज्ञानज्ञेयज्ञातृपदार्थों इति ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञात पदार्थ निगूढ़ गुहा बुद्धिः । गूढावस्या भोगा- . ( छिपे हुए ) हैं इसलिये 'गुहा' .: बुद्धिका नाम है। अथवा उसमें पवौं पुरुषार्थाविति वा तस्सां । भोग और अपवर्ग-ये पुरुषार्थ निगूढ परमे प्रकृष्टे व्योमन्व्योम्न्याका- अवस्थामें स्थित हैं; अतः गुहा है । | उसके भीतर परम-प्रकृष्ट व्योमशेऽव्याकृताख्ये । तद्धि परम आकाशमें अर्थात् अव्याकृताकाशमें, व्योम"एतस्मिन्न खल्वक्षरे गाया- क्योंकि "हे गार्गि ! निश्चय इस अक्षरमें ही आकाश [ओतप्रोत है ]" २ काश" (वृ० उ०३१८॥११) ०७० ।१९ इस श्रुतिके अनुसार अक्षरकी इत्यक्षरसंनिकात् । गुहायां सन्निधिमें होनेसे यह अव्याकृताकाश . तात्पर्य यह है कि वाच्य-वाचक-माव ब्रह्मका बोध करानेमें समर्थ नहीं हो सकता; अतः ब्रह्म इन शब्दोंका वाच्य नहीं हो सकता और सपूर्ण वैतकी---- निवृत्तिके अधिष्ठानरूपसे लक्षित होनेके कारण वह 'नीलकमल-आदिको सिमाना गुण-गुणीरूप संसर्गसूचक वाक्योंका भी अर्थ नहीं हो सकता।
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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