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________________ १०० ... . ' . .... बायोपनिषद तैत्तिरीयोपनिषद् [वल्ली २ प्रसिद्धिरतो नैक धात्वर्थस्तद- भली प्रकार सिद्ध ही है । अतः क्रियारूप न होनेके कारण वह क्रियारूपत्वात् । . (ज्ञान) धातुका अर्थ भी नहीं है। __ अत एव च न ज्ञानकर्ट,। इसीलिये यह ज्ञानकर्ता भी नहीं है और इसीसे यह ग्राम 'ज्ञान' तसादेव च न ज्ञानशब्दवाच्य ' शब्दका वाच्य भी नहीं है । तो भी मपि तद्रल्ल । तथापि तदाभास- ज्ञानाभातके वाचक तथा बुद्धिबाचकेन बुद्धिधर्मविपयेण ज्ञान- लक्षित होता है-कहा नहीं जाता, के धर्मविषयक तान' शब्दसे वह शब्देन तल्लक्ष्यते न तूच्यते । क्योंकि वह शब्दकी प्रवृत्तिके हेतु र भूत जाति आदि धर्मासे रहित है। शब्दप्रवृत्तिहेतुजात्यादिधर्मरहित "ए" इसी प्रकार 'सत्य' शब्दसे भी स्वात्। तथा सत्यशब्देनापि । सर्व [उसको लक्षितही किया जा सकता विशेषप्रत्यस्तमितखरूपत्वाद्रह्मणो है ] ब्रमकाखरूप सम्पूर्णविशेषणों से शून्य है; अतः वह सामान्यतः बाह्यसत्तासामान्यविपयेण सत्य- सत्ता ही जिसका विषय-अर्थ है .. ऐसे 'सत्य' शब्दसे 'सत्यं ब्रह्म इस शब्देन लक्ष्यते सत्यं ब्रह्मेति न प्रकार केवल लक्षित होता है-ब्रह्म तु सत्यशब्दवाच्यमेव ब्रह्म। 'सत्य' शब्दका वाच्य ही नहीं है। ___ एवं सत्यादिशब्दा इतरेतर- इस प्रकार ये सत्यादि शब्द संनिधावन्योन्यनियम्यनियाम- एक-दूसरेकी सन्निधिसे एक-दूसरेके काः सन्तः सत्यादिशब्दवाच्या नियम्य और नियामक होकर त्तनिवर्तका ब्रह्मणो लक्षणार्थाश्च सत्यादि शब्दोंके वाच्यार्थसे ब्रह्मको अलग रखनेवाले और उसका लक्षण भवन्तीत्यतः सिद्धम् “यतोवाचो करनेमें उपयोगी होते हैं। अतः निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह" | "जहाँसे मनके सहित वाणी उसे
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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