SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 940
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अर्चयस्व हपीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण . .. . . . .. देवताओंको जीत करके तीनों लोकोंका सम्राट् बन बैठा। ब्राहाणाधम ! मेरे शत्रुको यह स्तुति, जो कदापि उसने बलपूर्वक समस्त यज्ञ-भागोंपर अधिकार जमा सुननेयोग्य नहीं है, आज मेरे ही आगे इस बालकने भी लिया। देवताओंको कोई रक्षक न मिला। वे उससे सुना दी। यह सब तेरा ही प्रसाद है। इतना कहते-कहते परास्त हो गये। गन्धर्व, देवता और दानव-सभी दैत्यराज हिरण्यकशिपु क्रोधके मारे अपनी सुध-बुध खो उसके किङ्कर हो गये। यक्ष, नाग और सिद्ध-सभी बैठा और चारों ओर देखकर दैत्योंसे बोला-'अरे | इस उसके अधीन रहने लगे। उस महावली दैत्यराजने राजा ब्राह्मणको मार डालो।' आज्ञा पाते ही क्रोधमें भरे हुए उत्तानपादकी पुत्री कल्याणीके साथ विधिपूर्वक विवाह राक्षस आ पहुँचे और उन श्रेष्ठ ब्राह्मणके गलेमें रस्सी किया। उसके गर्भसे महातेजस्वी प्रह्लादका जन्म हुआ, लगाकर उन्हें बाँधने लगे। ब्राह्मणोंके प्रेमी प्रह्लाद अपने जो आगे चलकर दैत्योंके राजा हुए। वे गर्भमें रहते गुरुको बँधते देख पितासे बोले-'तात ! यह गुरुजीने समय भी सम्पूर्ण इन्द्रियोंके स्वामी श्रीहरिमें अनुराग रखते नहीं सिखाया है। मुझे तो देवाधिदेव भगवान् विष्णुकी ही थे। सब अवस्थाओं और समस्त कार्योंमें मन, वाणी, कृपासे ऐसी शिक्षा मिली है। दूसरा कोई गुरु मुझे उपदेश शरीर और क्रियाद्वारा वे देवताओंके स्वामी सनातन नहीं देता। मेरे लिये तो श्रीहरि ही प्रेरक हैं। सुनने, मनन भगवान् पद्मनाभके सिवा दूसरे किसीको नहीं जानते थे। करने, बोलने तथा देखनेवाले सर्वव्यापी ईश्वर केवल उनकी बुद्धि बड़ी निर्मल थी। समयानुसार उपनयन- श्रीविष्णु ही हैं। वे ही अविनाशी कर्ता हैं और वे ही सब संस्कार हो जानेपर वे गुरुकुलमें अध्ययन करने लगे। प्राणियोंपर नियन्त्रण करनेवाले हैं। अतः प्रभो ! मेरे गुरु सम्पूर्ण वेदों और नाना प्रकारके शास्त्रोंका अध्ययन इन ब्राह्मणदेवताका कोई अपराध नहीं है। इन्हें बन्धनसे करके वे प्रह्लाद किसी समय अपने गुरुके साथ घरपर मुक्त कर देना चाहिये। आये। उन्होंने पिताके पास जाकर बड़ी विनयके साथ पुत्रकी यह बात सुनकर हिरण्यकशिपुने ब्राह्मणका उनके चरणोंमें प्रणाम किया। हिरण्यकशिपुने उत्तम बन्धन खुलवा दिया और स्वयं बड़े विस्मयमें पड़कर लक्षणोंसे युक्त पुत्रको चरणोंमें पड़ा देख भुजाओंसे प्रहादसे कहा-'बेटा ! तुम ब्राह्मणोंके झूठे बहकावेमें उठाकर छातीसे लगा लिया और गोदमें बिठाकर आकर क्यों भ्रममें पड़ रहे हो? कौन विष्णु है ? कैसा कहा-'बेटा प्रहाद ! तुमने दीर्घकालतक गुरुकुलमें उसका रूप है और कहाँ वह निवास करता है ? संसारमें निवास किया है। वहाँ गुरुजीने जो तुम्हें जानने योग्य मैं हो ईश्वर हूँ। मैं ही तीनों लोकोंका स्वामी माना गया तत्त्व बतलाया हो, वह मुझसे कहो।' हूँ। विष्णु तो हमारे कुलका शत्रु है। उसे छोड़ो और मेरी पिताके इस प्रकार पूछनेपर जन्मसे ही वैष्णव ही पूजा करो। अथवा लोकगुरु भगवान् शंकरको प्रह्लादने बड़ी प्रसन्नताके साथ पापनाशक वचन कहा- आराधना करो, जो देवताओंके अध्यक्ष, सम्पूर्ण ऐश्वर्य "पिताजी ! जो सम्पूर्ण उपनिषदोंके प्रतिपाद्य तत्त्व, प्रदान करनेवाले और परम कल्याणमय है। ललाटमें अन्तर्यामी पुरुष और ईश्वर हैं, उन सर्वव्यापी भगवान् भस्मसे त्रिपुण्ड्र धारण करके पाशुपत-मार्गसे दैत्यपूजित विष्णुको नमस्कार करके मैं आपसे कुछ निवेदन करता महादेवजीकी पूजामें संलग्न रहो।' हूँ।' प्रह्लादके मुखसे इस प्रकार विष्णुकी स्तुति सुनकर पुरोहितोंने कहा-ठीक ऐसी ही बात है। दैत्यराज हिरण्यकशिपुको बड़ा विस्मय हुआ। उसने महाभाग ! प्रहाद ! तुम पिताकी बात मानो। अपने कुपित होकर गुरुसे पूछा- 'खोटी बुद्धिवाले ब्राह्मण ! कुलके शत्रु विष्णुको छोड़ो और त्रिनेत्रधारी महादेवजीकी तूने मेरे पुत्रको क्या सिखा दिया । मेरा पुत्र और इस प्रकार पूजा करो। महादेवजीसे बढ़कर सब कुछ देनेवाला विष्णुकी स्तुति करे-तूने ऐसी शिक्षा क्यों दी? यह दूसरा कोई देवता नहीं है। उन्हींकी कृपासे आज तुम्हारे मूर्खतापूर्ण न करनेयोग्य कार्य ब्राह्मणोंके ही योग्य है। पिता भी ईश्वरपदपर प्रतिष्ठित हैं।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy