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. मत्स्य और कूर्म अवतारोंकी कथा .
atternmenternmenternet.nnnnn............ भयंकर विषको पी लिया। सर्वव्यापी श्रीविष्णुके तीन प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित एक स्त्री प्रकट हुई, जिसे नामोंके प्रभावसे उस लोकसंहारकारी विषको मैंने गरुड़ने अपनी पत्नी बनाया। इसके बाद दिव्य अप्सराएँ अनायास ही पचा लिया। अच्युत, अनन्त और और महातेजस्वी गन्धर्व उत्पन्न हुए, जो अत्यन्त रूपवान् गोविन्द-ये ही श्रीहरिके तीन नाम हैं। जो एकाग्रचित्त और सूर्य, चन्द्रमा तथा अनिके समान तेजस्वी थी। हो इनके आदिमें प्रणव और अन्तमें नमः जोड़कर (ॐ तत्पश्चात् ऐरावत हाथी, उच्चैःश्रवा नामक अश्व, धन्वन्तरि अच्युताय नमः, ॐ अनन्ताय नमः तथा ॐ गोविन्दाय वैद्य, पारिजात वृक्ष और सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण नमः इस रूपमें) भक्तिपूर्वक जप करता है, उसे विष, करनेवाली सुरभि गौका प्रादुर्भाव हुआ। इन सबको रोग और अग्निसे होनेवाली मृत्युका महान् भय नहीं प्राप्त देवराज इन्द्रने बड़ी प्रसन्नताके साथ ग्रहण किया। इसके होता। जो इस तीन नामरूपी महामन्त्रका एकाग्रता- बाद द्वादशीको प्रातःकाल सूर्योदय होनेपर सम्पूर्ण पूर्वक जप करता है, उसे काल और मृत्युसे भी भय नहीं लोकोंकी अधीश्वरी कल्याणमयी भगवती महालक्ष्मी होता; फिर दूसरोंसे भय होनेकी तो बात ही क्या है।* प्रकट हुई। उन्हें देखकर सब देवताओंको बड़ा हर्ष देवि ! इस प्रकार मैंने तीन नामोके ही प्रभावसे विषका हुआ। देवलोकमें दुन्दुभियाँ बजने लगी, वनदेवियाँ पान किया था। मा
- फूलोंकी वृष्टि करने लगी, गन्धर्वराज गाने और अप्सराएँ तत्पश्चात् समुद्र-मन्थन करनेपर लक्ष्मीजीकी बड़ी नाचने लगीं। शीतल एवं पवित्र हवा चलने लगी। बहन दरिद्रा देवी प्रकट हुई। वे लाल वस्त्र पहने थीं। सूर्यको प्रभा निर्मल हो गयी। बुझी हुई अग्नियाँ जल उन्होंने देवताओंसे पूछा-'मेरे लिये क्या आज्ञा है।' उठी और सम्पूर्ण दिशाओंमें प्रसन्नता छा गयी। तब देवताओंने उनसे कहा-'जिनके घरमें प्रतिदिन तदनन्तर क्षीरसागरसे शीतल एवं अमृतमयी कलह होता हो, वहीं हम तुम्हें रहनेके लिये स्थान देते किरणोंसे युक्त चन्द्रमा प्रकट हुए, जो माता लक्ष्मीके हैं। तुम अमङ्गलको साथ लेकर उन्हीं घरोंमें जा बसो। भाई और सबको सुख देनेवाले हैं। वे नक्षत्रोंके स्वामी जहाँ कठोर भाषण किया जाता हो, जहाँके रहनेवाले और सम्पूर्ण जगत्के मामा हैं। इसके बाद श्रीहरिकी सदा झूठ बोलते हों तथा जो मलिन अन्तःकरणवाले पत्नी तुलसीदेवी प्रकट हुई, जो परम पवित्र और सम्पूर्ण पापी सन्ध्याके समय सोते हों, उन्हींक घरमें दुःख और विश्वको पावन बनानेवाली है। जगन्माता तुलसीका दरिद्रता प्रदान करती हुई तुम नित्य निवास करो। प्रादुर्भाव श्रीहरिकी पूजाके लिये ही हुआ है। तत्पश्चात् महादेवि ! जो खोटी बुद्धिवाला मनुष्य पैर धोये बिना ही सब देवता प्रसन्नचित्त होकर मन्दराचलपर्वतको आचमन करता है, उस पापपरायण मानवकी ही तुम यथास्थान रख आये और सफल मनोरथ हो माता सेवा करो।'
लक्ष्मीके पास जा सहस्रनामसे स्तुति करके श्रीसूक्तका - कलहप्रिया दरिद्रा देवीको इस प्रकार आदेश देकर जप करने लगे। तब भगवती लक्ष्मीने प्रसन्न होकर सम्पूर्ण देवताओंने एकाप्रचित्त हो पुनः क्षीरसागरका सम्पूर्ण देवताओसे कहा-'देववरो! तुम्हारा कल्याण मन्थन आरम्भ किया। तब सुन्दर नेत्रोंवाली वारुणी हो। मैं तुम्हें वर देना चाहती हूँ। मुझसे मनोवाञ्छित देवी प्रकट हुई, जिसे नागराज अनन्तने ग्रहण किया। वर माँगो।' तदनन्तर समस्त शुभलक्षणोंसे सुशोभित और सब देवता बोले-सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी भगवान्
- अच्युतानन्त गोविन्द इति नामत्रयं हरेः । यो जफेअयतो भक्त्या प्रणवाद्यं नमोऽत्तकम् ॥ तस्य मृत्युभयं नास्ति विषरोगाग्रिज महत्। नामत्रय महामन्त्र जपेद्यः प्रयतात्मवान्॥ कालमृत्युभयं चापि तस्य नास्ति किमन्यतः ।
(२६० । १९–२१)