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________________ उत्तरखण्ड ] . श्रीमद्भागवतके सप्ताह-पारायणकी विधि तथा भागवत-माहात्म्यका उपसंहार • ८६५ पीकर, पत्ते चबाकर और शरीरको सुखाकर दीर्घकालतक किया करते हैं। यह उपाख्यान परम पवित्र है। एक बार कठोर तपस्या करनेसे तथा योगाभ्यास करनेसे भी मनुष्य श्रवण करनेपर भी सारी पाप-राशिको भस्म कर देता है। उस गतिको नहीं प्राप्त होते, जिसे वे सप्ताह-कथाके यदि श्राद्धमें इसका पाठ किया जाय तो इससे पितरोंको श्रवणसे पा लेते हैं। मुनीश्वर शाण्डिल्य चित्रकूटमे रहकर पूर्ण तृप्ति होती है और प्रतिदिन इसका पाठ करनेसे ब्रह्मानन्दमें निमग्न हो इस पवित्र इतिहासका सदा पाठ मनुष्यको मोक्ष प्राप्त हो जाता है। श्रीमद्भागवतके सप्ताह-पारायणकी विधि तथा भागवत-माहात्म्यका उपसंहार श्रीसनकादि कहते हैं-नारदजी ! अब हम किसी कारणवश विशेष अवकाश न हो, तब भी एक सप्ताह-श्रवणको विधिका वर्णन करते हैं। यह कार्य दिनके लिये तो कृपा करनी ही चाहिये; क्योंकि यहाँका प्रायः लोगोंकी सहायता और धनसे साध्य होनेवाला एक क्षण भी अत्यन्त दुर्लभ है। इसलिये सब प्रकारसे माना गया है। पहले ज्योतिषीको बुलाकर इसके लिये यहाँ पधारनेके लिये ही चेष्टा करनी चाहिये।' इस प्रकार यत्नपूर्वक मुहूर्त पूछना चाहिये। फिर विवाहके कार्यमे बड़ी विनयके साथ उनको आमन्त्रित करे और जो लोग जितने धनको आवश्यकता होती है, उतने ही धनका आवें, उन सबके ठहरनेके लिये प्रबन्ध करे। तीर्थमें, प्रबन्ध कर लेना चाहिये। कथा आरम्भ करनेके लिये वनमें अथवा अपने घरपर भी कथा-श्रवण उत्तम माना भादों, कुआर, कार्तिक,अगहन, आषाढ़ और सावन- गया है। जहाँ भी लम्बी-चौड़ी भूमि- मैदान खाली ये महीने श्रोताओंके लिये मोक्षप्राप्तिके कारण माने गये हो, वहीं कथाके लिये स्थान बनाना चाहिये। जमीनको हैं। महीनोंमें जो भद्रा, व्यतीपात आदि काल त्यागने- झाड़-बुहारकर, धोकर और लीप-पोतकर शुद्ध करे। योग्य माने गये है, उन सबको सब प्रकारसे त्याग देना फिर उसपर गेरु आदिसे चौक पुरावे । यदि वहाँ कोई ही उचित है। जो लोग उत्साही और उद्योगी हों-ऐसे घरका सामान पड़ा हो तो उसे उठाकर एक कोने में रखवा अन्य व्यक्तियोंको भी सहायक बना लेना चाहिये। फिर दे। कथा आरम्भ होनेसे पाँच दिन पहलेसे ही यत्नपूर्वक प्रयत्नपूर्वक देश-देशान्तरोंमें यह समाचार भेज देना बहुत-से आसन जुटा लेने चाहिये। तथा एक ऊंचा चाहिये कि अमुक स्थानपर श्रीमद्भागवतकी कथा मण्डप तैयार कराकर उसे केलेके खम्भोंसे सजा देना होनेवाली है, अतः सब लोग कुटुम्बसहित यहाँ पधारें। चाहिये। उसे फल, फूल, पत्तों तथा चंदोवेसे सब ओर कुछ लोग भगवत्कथा और कीर्तन आदिसे बहुत दूर हैं; अलङ्कत करे; मण्डपके चारों ओर ध्वजारोपण करे और इसलिये इस समाचारको इस प्रकार फैलावें, जिससे नाना प्रकारको शोभामयी सामग्रियोंसे उसे सजावे। उस स्त्रियों और शूद्र आदिको भी इसका पता लग जाय। मण्डपके ऊपरी भागमें विस्तारपूर्वक सात लोकोंकी देश-देशमें जो विरक्त और कथा-कीर्तनके लिये उत्सुक कल्पना करे और उनमें विरक्त ब्राह्मणोंको बुला-बुलाकर रहनेवाले वैष्णव हों, उनके पास भी पत्र भेजना चाहिये बिठावे। पहलेसे ही वहाँ उनके लिये यथोचित आसन तथा उन पत्रोंमें इस प्रकार लिखना उचित है- तैयार करके रखे। वक्ताके लिये भी सुन्दर व्यासगद्दी 'महानुभावो ! यहाँ सात राततक सत्पुरुषोंका सुन्दर बनवानी चाहिये। यदि वक्ताका मुख उत्तरकी ओर हो तो समागम होगा, जो अन्यत्र बहुत ही दुर्लभ है। इसमें श्रोता पूर्वाभिमुख होकर बैठे और यदि वक्ताका मुख श्रीमद्भागवतकी अपूर्व रसमयी कथा होगी। आपलोग पूर्वकी ओर हो तो श्रोताको उत्तराभिमुख होकर बैठना श्रीमद्भागवतामृतका पान करनेके रसिक है, अतः यहाँ चाहिये। अथवा वक्ता और श्रोताके बीच में पूर्व दिशा प्रेमपूर्वक शीघ्र ही पधारनेकी कृपा करें। यदि आपको आ जानी चाहिये। देश, काल आदिको जाननेवाले
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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