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________________ ८६४ . अवयव हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • उनसे इस प्रकार पूछा- 'भगवान्‌के परिकरो! यहाँ तो बहुत-से शुद्ध अन्तःकरणवाले मेरी कथाके श्रोता बैठे हुए हैं आपलोग एक ही साथ इनके लिये भी विमान क्यों नहीं लाये ? देखनेमें आता है— सबने समानरूपसे यहाँ कथा श्रवण किया है; फिर फलमें क्यों इस प्रकार भेद हुआ ? यह बतानेकी कृपा कीजिये।' भगवान्‌ के पार्षद बोले- गोकर्णजी ! इनके कथा श्रवणमें भेद होनेसे ही फलमें भी भेद हुआ है। यद्यपि श्रवण सब लोगोंने ही किया है; किन्तु इसके जैसा मनन किसीने नहीं किया है, इसीलिये फलमें भेद हुआ है। पुनः कथा श्रवण करनेपर यह फल भेद भी दूर हो जायगा। प्रेतने सात रात उपवास करके कथा श्रवण किया है। अतः उसने स्थिरचित्तसे भलीभाँति मनन आदि किया है। जो ज्ञान दृढ़ नहीं होता, वह व्यर्थ हो जाता है। इसी प्रकार ध्यान न देनेसे श्रवण, सन्देहसे मन्त्र और चञ्चलचित्त होनेसे जप निष्फल हो जाता है। वैष्णव- पुरुषोंसे रहित देश, कुपात्र ब्राह्मणसे कराया हुआ श्राद्ध, अश्रोत्रियको दिया हुआ दान और सदाचारहीन कुल भी नष्ट ही समझना चाहिये। गुरुके वचनों में विश्वास हो, अपनेमें दीनताकी भावना बनी रहे, मनके दोषोंको काबू में रखा जाय और कथामें दृढ़ निष्ठा बनी रहे इन सब बातोंका यदि पालन किया जाय तो अवश्य ही कथा श्रवणका पूरा-पूरा फल मिलता है। [ संक्षिप्त पद्मपुराण पुनः कथा श्रवण करनेके पश्चात् इन सब लोगोंका वैकुण्ठमें निवास निश्चित है। गोकर्णजी ! तुम्हें तो स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ही गोलोक प्रदान करेंगे। ऐसा कहकर वे सब पार्षद भगवान्‌के नामोंका कीर्तन करते हुए वैकुण्ठधाममें चले गये। उसके बाद गोकर्णने पुनः श्रावण मासमें कथा बाँची। उस समय सब लोगोंने सात दिनोंतक उपवास करके कथा श्रवण किया। नारदजी ! कथाकी समाप्ति होनेपर वहाँ जो कुछ हुआ, उसे सुनिये। उस समय बहुत से विमानोंको साथ लिये भक्तोंसहित साक्षात् भगवान् उस स्थानपर प्रकट हो गये। चारों ओरसे जय जयकार और नमस्कारके शब्द बारम्बार सुनायी देने लगे। भगवान्‌ने प्रसन्न होकर वहाँ स्वयं भी अपने पाञ्चजन्य नामक शुङ्खको बजाया तथा गोकर्णको छातीसे लगाकर उन्हें अपने समान ही बना लिया। उनके सिवा और भी जितने श्रोता थे, उन सबको श्रीहरिने एक ही क्षणमें अपना सारूप्य दे दिया। वे सभी मेघके समान श्यामवर्ण, पीताम्बरधारी तथा किरीट और कुण्डलोंसे सुशोभित हो गये। उस गाँवमें कुत्ते और चाण्डाल आदि जितने भी जीव थे, उन सबको गोकर्णकी दयासे भगवान्‌ने विमानपर बिठा लिया और वैकुण्ठधाममें भेज दिया, जहाँ योगी पुरुष जाया करते हैं। तत्पश्चात् भक्तवत्सल भगवान् गोपाल कथा श्रवणसे प्रसन्न हो, गोकर्णको साथ ले गोपवल्लभ गोलोक - धामको पधारे। जैसे पूर्वकालमें समस्त अयोध्यावासी भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके साथ साकेतधाममें गये थे, उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्णने उस गाँवके सब मनुष्योंको योगियोंके लिये भी दुर्लभ गोलोक धाममे पहुँचा दिया। जहाँ सूर्य, चन्द्रमा और सिद्ध पुरुषोंकी भी कभी पहुँच नहीं होती, उसी लोकमें वहाँके सब प्राणी केवल श्रीमद्भागवतकी कथा सुननेसे चले गये । नारदजी ! श्रीमद्भागवतकी कथामें सप्ताह यज्ञसे जिस उज्ज्वल फल समुदायका सचय होता है, उसका इस समय हम आपसे क्या वर्णन करें। जिन्होंने गोकर्णजीकी कथाका एक अक्षर भी अपने कर्ण -पुटोंके द्वारा पान किया, वे फिर माताके गर्भमें नहीं आये। हवा
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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