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________________ उत्तरखण्ड ] . श्रीमद्भगवदीताके सत्रहवें और अठारहवे अध्यायोंका माहात्म्य , ८४३ देखा तो राजाके पास जाकर हाथोके हितके लिये शीघ्र उत्तम जलको अभिमन्त्रित करके उसके ऊपर डाला, तो ही सारा हाल कह सुनाया-'महाराज ! आपका हाथी दुःशासन गजयोनिका परित्याग करके मुक्त हो गया। अस्वस्थ जान पड़ता है। उसका खाना, पीना और सोना राजाने दुःशासनको दिव्य विमानपर आरूढ़ एवं इन्द्रके सब छूट गया है। हमारी समझमें नहीं आता इसका क्या समान तेजस्वी देखकर पूछा-'तुम्हारी पूर्व-जन्ममें क्या कारण है।' जाति थी? क्या स्वरूप था? कैसे आचरण थे? और हाथीवानोंका बताया हुआ समाचार सुनकर राजाने किस कर्मसे तुम यहाँ हाथी होकर आये थे? ये सारी हाथीके रोगको पहचाननेवाले चिकित्साकुशल मन्त्रियोंके बाते मुझे बताओ।' राजाके इस प्रकार पूछनेपर सङ्कटसे साथ उस स्थानपर पदार्पण किया जहाँ हाथी ज्वरग्रस्त छूटे हुए दुःशासनने विमानपर बैठे-ही-बैठे स्थिरताके होकर पड़ा था। राजाको देखते ही उसने ज्वरजनित साथ अपना यथावत् समाचार कह सुनाया। तत्पश्चात् वेदनाको भूलकर संसारको आश्चर्यमें डालनेवाली नरश्रेष्ठ मालवनरेश भी गीताके सत्रहवें अध्यायका वाणीमें कहा–'सम्पूर्ण शास्त्रोंके ज्ञाता, राजनीतिके जप करने लगे। इससे थोड़े ही समयमें उनकी मुक्ति समुद्र, शत्रु-समुदायको परास्त करनेवाले तथा भगवान् हो गयी। विष्णुके चरणोंमें अनुराग रखनेवाले महाराज ! इन श्रीपार्वतीजीने कहा-भगवन् ! आपने सत्रहवें औषधोंसे क्या लेना है? वैद्योंसे भी कुछ लाभ अध्यायका माहात्म्य बतलाया। अब अठारहवें अध्यायके होनेवाला नहीं है। दान और जपसे भी क्या सिद्ध माहात्म्यका वर्णन कौजिये। होगा? आप कृपा करके गीताके सत्रहवें अध्यायका श्रीमहादेवजीने कहा-गिरिनन्दिनि ! चिन्मय पाठ करनेवाले किसी ब्राह्मणको बुलवाइये। आनन्दकी धारा बहानेवाले अठारहवें अध्यायके पावन __ हाथीके कथनानुसार राजाने सब कुछ वैसा ही माहात्म्यको, जो वेदसे भी उत्तम है, श्रवण करो। यह किया। तदनन्तर गीता-पाठ करनेवाले ब्राह्मणने जब सम्पूर्ण शास्त्रोंका सर्वस्व, कानोंमें पड़ा हुआ रसायनके समान तथा संसारके यातना-जालको छिन्न-भिन्न करनेवाला है। सिद्ध पुरुषोंके लिये यह परम रहस्यकी वस्तु है। इसमें अविद्याका नाश करनेकी पूर्ण क्षमता है। यह भगवान् विष्णुको चेतना तथा सर्वश्रेष्ठ परमपद है। इतना ही नहीं, यह विवेकमयी लताका मूल, काम, क्रोध और मदको नष्ट करनेवाला, इन्द्र आदि देवताओंके चित्तका विश्राम-मन्दिर तथा सनक-सनन्दन आदि महायोगियोका मनोरञ्जन करनेवाला है। इसके पाठमात्रसे यमदूतोकी गर्जना बंद हो जाती है। पार्वती ! इससे बढ़कर कोई ऐसा रहस्यमय उपदेश नहीं है, जो सन्तप्त मानवोंके त्रिविध तापको हरनेवाला और बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाला हो। अठारहवे अध्यायका लोकोत्तर माहात्म्य है। इसके सम्बन्धमें जो पवित्र उपाख्यान है, उसे भक्तिपूर्वक सुनो। उसके श्रवणमात्रसे जीव समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। मेरुगिरिके शिखरपर अमरावती नामवाली एक
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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