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________________ ८१८ • अयस्व बीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण ........ .... AN धर दबाया और शीघ्र ही उसके प्राण ले लिये। पाठसे ही सिद्ध हो गया है। पिताके यों कहनेपर पुत्रने उसके धर्मका लोप हो गया था, इसलिये वह बड़ा पूछा-'तात ! मेरे हितका उपदेश दीजिये तथा और भयानक प्रेत हुआ। उसका पुत्र बड़ा धर्मात्मा और वेदोंका विद्वान् था। उसने अबतक पिताके लौट आनेकी राह देखी। जब वे | नहीं आये, तब उनका पता लगानेके लिये वह स्वयं भी घर छोड़कर चल दिया। वह प्रतिदिन खोज करता, मगर राहगीरोसे पूछनेपर भी उसे उनका कुछ समाचार नहीं मिलता था । तदनन्तर एक दिन एक मनुष्यसे उसकी भेंट हुई, जो उसके पिताका सहायक था। उससे सारा हाल जानकर उसने पिताकी मृत्युपर बहुत शोक किया। वह बड़ा बुद्धिमान् था। बहुत कुछ सोच-विचार कर पिताका पारलौकिक कर्म करनेकी इच्छासे आवश्यक सामग्री साथ ले उसने काशी जानेका विचार किया। मार्गमें सात-आठ मुकाम डालकर वह नवें दिन उसी वृक्षके नीचे पहुंचा, जहाँ उसके पिता मारे गये थे। उस स्थानपर उसने सन्ध्योपासना की और गीताके तीसरे अध्यायका पाठ किया। इसी समय आकाशमें बड़ी भयानक आवाज हुई। उसने अपने पिताको भयंकर आकारमें देखा; फिर कोई कार्य जो मेरे लिये करनेयोग्य हो बतलाइये। तब तुरंत ही अपने सामने आकाशमें उसे एक सुन्दर विमान पिताने उससे कहा-'अनघ ! तुम्हें यही कार्य फिर दिखायी दिया, जो महान् तेजसे व्याप्त था। उसमें अनेकों करना है। मैंने जो कर्म किया है, वही मेरे भाईने भी क्षुद्र घण्टिकाएँ लगी थीं। उसके तेजसे समस्त दिशाएँ किया था। इससे वे घोर नरकमें पड़े हैं। उनका भी तुम्हें आलोकित हो रही थीं। यह दृश्य देखकर उसके चित्तको उद्धार करना चाहिये तथा मेरे कुलके और भी जितने व्यग्रता दूर हो गयी। उसने विमानपर अपने पिताको लोग नरकमें पड़े हैं, उन सबका भी तुम्हारे द्वारा उद्धार दिव्यरूप धारण किये विराजमान देखा। उनके शरीरपर हो जाना चाहिये; यही मेरा मनोरथ है। बेटा । जिस पीताम्बर शोभा पा रहा था और मुनिजन उनकी स्तुति कर साधनके द्वारा तुमने मुझे संकटसे छुड़ाया है। उसीका रहे थे। उन्हें देखते ही पुत्रने प्रणाम किया। तब पिताने भी अनुष्ठान औरोंके लिये भी करना उचित है। उसका उसे आशीर्वाद दिया। प्रार अ नुष्ठान करके उससे होनेवाला पुण्य उन नारकी तत्पश्चात् उसने पितासे यह सारा वृत्तान्त पूछा। जीवोंको सङ्कल्प करके दे दो। इससे वे समस्त पूर्वज उसके उत्तरमें पिताने सब बातें बताकर इस प्रकार कहना मेरी ही तरह यातनासे मुक्त हो स्वल्पकालमें ही श्रीविष्णुके आरम्भ किया-'बेटा ! दैववश मेरे निकट गीताके परमपदको प्राप्त हो जायेंगे।' तृतीय अध्यायका पाठ करके तुमने इस शरीरके द्वारा पिताका यह सन्देश सुनकर पुत्रने कहा-'तात ! किये हुए दुस्त्यज कर्म-बन्धनसे मुझे छुड़ा दिया। अतः यदि ऐसी बात है और आपकी भी ऐसी ही रुचि है तो अव घर लौट जाओ; क्योंकि जिसके लिये तुम काशी मैं समस्त नारकी जीवोंका नरकसे उद्धार कर दूंगा।' यह जा रहे थे, वह प्रयोजन इस समय तृतीय अध्यायके सुनकर उसके पिता बोले-'बेटा ! एवमस्तु, तुम्हारा
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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