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________________ सृष्टिखण्ड ] • नाना प्रकारके व्रत, स्नान और तर्पणकी विधि तथा धर्ममूर्तिकी कथा. इस प्रकार मृत्तिका लगाकर पुनः स्नान करे। फिर जो लोग मेरे बान्धव न हों, जो मेरे बान्धव हों तथा विधिवत् आचमन करके उठे और शुद्ध सफेद धोती एवं जो दूसरे किसी जन्ममें मेरे बान्धव रहे हों, वे सब मेरे दिये चद्दर धारण कर त्रिलोकीको तृप्त करनेके लिये तर्पण करे। हुए जलसे तृप्त हों। उनके सिवा और भी जो कोई प्राणी सबसे पहले ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और प्रजापतिका तर्पण मुझसे जलकी अभिलाषा रखते हों, वे भी तृप्ति लाभ करे। तत्पश्चात् देवता, यक्ष, नाग, गन्धर्व, श्रेष्ठ अप्सराएँ, करें।' (ऐसा कहकर उनके उद्देश्यसे जल गिराये।] क्रूर सर्प, गरुड़ पक्षी, वृक्ष, जम्भक आदि असुर, तत्पश्चात् विधिपूर्वक आचमन करके अपने आगे विद्याधर, मेघ, आकाशचारी जीव, निराधार जीव, पापी पुष्प और अक्षतोंसे कमलकी आकृति बनाये। फिर जीव तथा धर्मपरायण जीवोंको तृप्त करनेके लिये मैं जल यलपूर्वक सूर्यदेवके नामोंका उच्चारण करते हुए अक्षत, देता हूँ-यह कहकर उन सबको जलाञ्जलि दे।* पुष्प और रक्तचन्दनमिश्रित जलसे अर्घ्य दे। देवताओंका तर्पण करते समय यज्ञोपवीतको बायें कंधेपर अर्घ्यदानका मन्त्र इस प्रकार हैडाले रहे, तत्पश्चात् उसे गले में मालाकी भाँति कर ले और नमस्ते विश्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मरूपिणे। मनुष्यों, ऋषियों तथा ऋषिपुत्रोंका भक्तिपूर्वक तर्पण करे। सहस्ररश्मये नित्यं नमस्ते सर्वतेजसे ॥ 'सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और नमस्ते रुद्रवपुषे नमस्ते भक्तवत्सल। पञ्चशिख-ये सभी मेरे दिये जलसे सदा तृप्त हो।' ऐसी पद्मनाभ नमस्तेऽस्तु कुण्डलाङ्गदभूषित ॥ भावना करके जल दे। इसी प्रकार मरीचि, अत्रि, नमस्ते सर्वलोकेषु सुप्तांस्तान् प्रतिबुध्यसे। अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वसिष्ठ, भृगु, नारद सुकृतं दुष्कृतं चैव सर्व पश्यसि सर्वदा ।। तथा सम्पूर्ण देवर्षियों एवं ब्रह्मर्षियोंका अक्षतसहित सत्यदेव नमस्तेऽस्तु प्रसीद मम भास्कर। जलके द्वारा तर्पण करे। इसके बाद यज्ञोपवीतको दायें दिवाकर नमस्तेऽस्तु प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥ कंधेपर करके बायें घुटनेको पृथ्वीपर टेककर बैठे; फिर (२०।१७२-७५) अग्निश्चात्त, सौम्य, हविष्मान्, ऊष्मप, सुकाली, बर्हिषद् 'भगवान् सूर्य ! आप विश्वरूप और ब्रह्मस्वरूप हैं, तथा आज्यप नामके पितरोंका तिल और चन्दनयुक्त इन दोनों रूपोंमें आपको नमस्कार है। आप सहस्रों जलसे भक्तिपूर्वक तर्पण करे। इसी प्रकार हाथोंमें कुश किरणोंसे सुशोभित और सबके तेजरूप हैं, आपको सदा लेकर पवित्रभावसे परलोकवासी पिता, पितामह आदि नमस्कार है। भक्तवत्सल ! रुद्ररूपधारी आप परमेश्वरको और मातामह आदिका, नाम-गोत्रका उच्चारण करते हुए बारम्बार नमस्कार है। कुण्डल और अङ्गद आदि तर्पण करे । इस क्रमसे विधि और भक्तिके साथ सबका आभूषणोंसे विभूषित पद्मनाभ ! आपको नमस्कार है। तर्पण करके निम्नाङ्कित मन्त्रका उच्चारण करे- भगवन् ! आप सम्पूर्ण लोकोंके सोये हुए जीवोंको ___ येऽबान्धवा बान्धवा ये येऽन्यजन्मनि बान्धवाः ॥ जगाते हैं, आपको मेरा प्रणाम है। आप सदा सबके ते तृप्तिमखिला यान्तु येऽप्यस्मत्तोयकाङ्गिणः। पाप-पुण्यको देखा करते हैं। सत्यदेव ! आपको (२० । १६९-७०) नमस्कार है। भास्कर ! मुझपर प्रसन्न होइये । दिवाकर ! * देवा यक्षास्तथा नागा गन्धर्वाप्सरसा वराः ।। क्रूराः सर्पाः सुपर्णाच तरवो जम्भकादयः । विद्याधरा जलधरास्तथैवाकाशगामिनः । निराधाराश्च ये जीवा पापे धमें रताच ये। तेषामाप्यायनं चैव दीयते सलिलं मया ॥ (२०११५९-६१) + सनकक्ष सनन्दव तृतीया सनातनः । कपिलवासुरिक्षेव वोदुः पशिखस्तथा ॥ सर्वे ते तृप्तिमायान्तु महत्तेनाम्बुना सदा। (२०। १६२-६४)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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