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________________ ७७८ . • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पापुराण इस व्रतको करे, पूर्ण भक्तिके साथ इन्द्रियोंको काबूमें उपवासके नियमको पूरा करके द्वादशी तिथिको भगवान् रखते हुए दिन-रात श्रीविष्णुके नामोंका कीर्तन करता रहे। गरुडध्वजका पूजन करे । फूल, माला, गन्ध, धूप, चन्दन, भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुकी स्तुति करे । झूठ न बोले । सम्पूर्ण वस्त्र, आभूषण और वाद्य आदिके द्वारा भगवान् विष्णुको जीवोंपर दया करे । अन्तःकरणको वृत्तियोंको अशान्त न संतुष्ट करे। चन्दनमिश्रित तीर्थके जलसे भक्तिपूर्वक होने दे। हिंसा त्याग दे। सोया हो या बैठा, श्रीवासुदेवका भगवानको स्नान कराये। फिर उनके अङ्गोंमें चन्दनका कीर्तन किया करे। अत्रका स्मरण, अवलोकन, संघना, लेप करके गन्ध और पुष्पोंसे शृङ्गार करे। फिर वस्त्र स्वाद लेना, चर्चा करना तथा प्रासको मुंहमें लेना-ये आदिका दान करके उत्तम ब्राह्मणोंको भोजन कराये, उन्हें सभी निषिद्ध है। व्रतमें स्थित मनुष्य शरीरमें उबटन दक्षिणा दे और प्रणाम करके उनसे त्रुटियोंके लिये लगाना, सिरमें तेलकी मालिश कराना, पान खाना और क्षमा याचना करे। इस प्रकार मासोपवासपूर्वक चन्दन लगाना छोड़ दे तथा अन्यान्य निषिद्ध वस्तुओंका जनार्दनकी पूजा करके ब्राहाणोंको भोजन करानेसे मनुष्य भी त्याग करे। व्रत करनेवाला पुरुष शास्त्रविरुद्ध कर्म श्रीविष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है। मण्डपमें उपस्थित करनेवाले व्यक्तिका स्पर्श न करे। उससे वार्तालाप भी न ब्राह्मणोंसे वारंवार इस प्रकार कहना चाहियेकरे। पुरुष, सौभाग्यवती स्त्री अथवा विधवा नारी 'द्विजवरो! इस व्रतमें जो कोई भी कार्य मन्त्रहीन, शास्त्रोक्त विधिसे एक मासतक उपवास करके भगवान् क्रियाहीन और सब प्रकारके साधनों एवं विधियोंसे हीन वासुदेवका पूजन करे। यह व्रत गिने-गिनाये तीस दिनोंका हुआ हो, वह सब आपलोगोंके वचन और प्रसादसे होता है, इससे अधिक या कम दिनोंका नहीं। मनको परिपूर्ण हो जाय।' कार्तिकेय ! इस प्रकार मैंने तुमसे संयममें रखनेवाला जितेन्द्रिय पुरुष एक मासतक मासोपवासकी विधिका यथावत् वर्णन किया है। शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य कार्तिकेयने कहा-भगवन् ! आप योगियोंमें करके भगवत्स्वरूप हो जाता है। शालग्रामशिलाका श्रेष्ठ हैं। मैंने आपके मुखसे सब धर्मोका श्रवण किया। स्मरण, कीर्तन, ध्यान, पूजन और नमस्कार करनेपर प्रभो ! अब शालग्राम-पूजनकी विधिका विस्तारके साथ कोटि-कोटि ब्रह्महत्याओका पाप नष्ट हो जाता है। वर्णन कीजिये। शालग्रामशिलाका दर्शन करनेसे अनेक पाप दूर हो जाते र महादेवजी बोले-महामते ! तुमने बहुत उत्तम हैं। जो मनुष्य प्रतिदिन शालग्रामशिलाकी पूजा करता है, बात पूछी है। वत्स ! तुम जो कुछ पूछ रहे हो, उसका उसे न तो यमराजका भय होता है और न मरने या जन्म उत्तर देता हूँ सुनो। शालग्रामशिलामें सदा चराचर लेनेका ही। जिन मनुष्योंने भक्तिभावसे शालग्रामको प्राणियोसहित समस्त त्रिलोकी लौन रहती है। जो नमस्कार मात्र कर लिया, उनको तथा मेरे भक्तोंको फिर शालग्रामशिलाका दर्शन करता, उसे मस्तक झुकाता, मनुष्य-योनिकी प्राप्ति कैसे हो सकती है। वे तो मुक्तिके स्नान कराता और पूजन करता है, वह कोटि यज्ञोंके अधिकारी हैं। जो मेरी भक्तिके घमंडमें आकर मेरे प्रभु समान पुण्य तथा कोटि गोदानोंका फल पाता है। बेटा ! भगवान् वासुदेवको नमस्कार नहीं करते, वे पापसे जो पुरुष सर्वदा भगवान् विष्णुकी शालग्रामशिलाका मोहित हैं; उन्हें मेरा भक्त नहीं समझना चाहिये। चरणामृत पान करता है, उसने गर्भवासके भयङ्कर करोड़ों कमल-पुष्पोंसे मेरी पूजा करनेपर जो फल कष्टका नाश कर दिया। जो सदा भोगोंमें आसक्त और होता है, वही शालग्रामशिलाके पूजनसे कोटिगुना होकर भक्तिभावसे हीन है, वह भी शालग्रामशिलाका पूजन मिलता है, जिन लोगोंने मर्त्यलोकमें आकर शालग्राम
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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