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________________ ७५४ ******** " अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् ***.....................** [ संक्षिप्त पद्मपुराण ******** दिन जब एक पहर रात बाकी रहे, उस समय गीत वाद्य आदि मङ्गलमय विधानोंके द्वारा जो लोग तुम्हारे ही समान मेरी आराधना करेंगे, वे मुझे प्रसन्न करनेके कारण मेरे समीप आ जायेंगे। शङ्खासुरके द्वारा हरे गये सम्पूर्ण वेद जलमें स्थित हैं। मैं सागरपुत्र शङ्खका वध करके उन्हें ले आऊँगा । आजसे लेकर सदा ही प्रतिवर्ष कार्तिक मासमें मन्त्र, बीज और यज्ञोंसे युक्त वेद जलमें विश्राम करेंगे। आजसे मैं भी इस महीनेमें जलके भीतर निवास करूँगा। तुमलोग भी मुनीश्वरोंको साथ लेकर मेरे साथ आओ। इस समय जो श्रेष्ठ द्विज प्रातः स्नान करते हैं, वे निश्चय ही सम्पूर्ण यज्ञोंका अवभृथस्नान कर चुके। जिन्होंने जीवनभर शास्त्रोक्त विधिसे कार्तिकके उत्तम व्रतका पालन किया हो, वे तुमलोगोंके भी माननीय हो । तुमने एकादशीको मुझे जगाया है; इसलिये यह तिथि मेरे लिये अत्यन्त प्रीतिदायिनी और माननीय होगी। कार्तिक मास और एकादशी तिथि – इन दो व्रतोंका यदि मनुष्य अनुष्ठान करें तो ये मेरे सांनिध्यकी प्राप्ति करानेवाले हैं। इनके समान दूसरा कोई साधन नहीं है। मछलीके समान रूप धारण करके आकाशसे विन्ध्यपर्वत निवासी कश्यप मुनिकी अञ्जलिमें गिरे। मुनिने करुणावश उस मत्स्यको अपने कमण्डलुमें रख लिया; किन्तु वह उसमें अँट न सका। तब उन्होंने उसे कुएँमें ले जाकर डाल दिया। जब उसमें भी वह न आ सका, तब मुनिने उसे तालाबमें पहुँचा दिया; किन्तु वहाँ भी यही दशा हुई। इस प्रकार उसे अनेक स्थानोंमें रखते हुए अन्ततोगत्वा उन्होंने समुद्रमें डाल दिया। वहाँ भी बढ़कर वह विशालकाय हो गया । तदनन्तर उन मत्स्यरूपधारी भगवान् विष्णुने शङ्खासुरका वध किया और उस शङ्खको अपने हाथमें लिये वे बदरीवनमें गये। वहाँ सम्पूर्ण ऋषियोंको बुलाकर भगवान्‌ने इस प्रकार आदेश दिया। श्रीविष्णु बोले- महर्षियो ! जलके भीतर बिखरे हुए वेदोंकी खोज करो और रहस्योंसहित उनका पता लगाकर शीघ्र ही ले आओ। तबतक में देवताओंके साथ प्रयागमें ठहरता हूँ। तब तेज और बलसे सम्पन्न समस्त मुनियोंने यज्ञ और बीजसहित वेदमन्त्रोंका उद्धार किया। जिस वेदके नारदजी कहते हैं - यह कहकर भगवान् विष्णु जितने मन्त्रको जिस ऋषिने उपलब्ध किया, वही उतने
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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