________________
उत्तरखण्ड ]
• कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसङ्गमें शङ्कासुरके वध आदिकी कथा .
............................
कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसङ्गमें शङ्कासुरके वध, वेदोंके उद्धार
तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
सत्यभामाने पूछा-देवदेवेश्वर ! तिथियोंमें वलसे प्रबल प्रतीत होते हैं। यह बात मेरी समझमें आ एकादशी और महीनोंमें कार्तिक मास आपको विशेष गयी है, अतः मैं वेदोंका ही अपहरण करूँगा। इससे प्रिय क्यों हैं? इसका कारण बताइये।
समस्त देवता निर्बल हो जायेंगे।' ऐसा निश्चय करके वह भगवान् श्रीकृष्ण बोले-सत्ये ! तुमने बहुत वेदोंको हर ले आया। इधर ब्रह्माजी पूजाकी सामग्री अच्छी बात पूछी है। एकाग्रचित्त होकर सुनो। प्रिये ! लेकर देवताओंके साथ वैकुण्ठलोकमें जा भगवान् पूर्वकालमें राजा पृथुने भी देवर्षि नारदसे ऐसा ही प्रश्न विष्णुको शरणमें गये। उन्होंने भगवान्को जगानेके लिये किया था। उस समय सर्वज्ञ मुनिने उन्हें कार्तिक मासकी गीत गाये और बाजे बजाये। तब भगवान् विष्णु उनको
भक्तिसे संतुष्ट हो जाग उठे। देवताओंने उनका दर्शन किया। वे सहसों सूर्योक समान कान्तिमान् दिखायी देते थे। उस समय षोडशोपचारसे भगवानकी पूजा करके देवता उनके चरणोंमें पड़ गये। तब भगवान् लक्ष्मीपतिने उनसे इस प्रकार कहा।
श्रेष्ठताका कारण बताया था।
नारदजी बोले-पूर्वकालमें शङ्ख नामक एक असुर था, जो त्रिलोकीका नाश करनेमें समर्थ तथा महान् बल एवं पराक्रमसे युक्त था। वह समुद्रका पुत्र था। उस महान् असुरने समस्त देवताओंको परास्त करके स्वर्गसे बाहर कर दिया और इन्द्र आदि श्रीविष्णु बोले-देवताओ ! तुम्हारे गीत, वाद्य लोकपालोंके अधिकार छीन लिये। देवता मेरुगिरिकी आदि मङ्गलमय कार्योंसे संतुष्ट हो मैं वर देनेको उद्यत दुर्गम कन्दराओंमें छिपकर रहने लगे। शत्रुके अधीन हूँ। तुम्हारी सभी मनोवाञ्छित कामनाओंको पूर्ण नहीं हुए। तब दैत्यने सोचा कि 'देवता वेदमन्त्रोंके करूँगा। कार्तिकके शुक्लपक्षमें 'प्रबोधिनी एकादशीके