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. अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
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[ संक्षिप्त पयपुराण
पूजा करते हैं, वे मानव इस पृथ्वीपर धर्म, अर्थ, काम पूजन करे। महादेवि ! पौष मासमें नाना प्रकारके
और मोक्ष-चारों पदार्थ प्राप्त कर लेते हैं। कार्तिक तुलसीदल तथा कस्तूरीमिश्रित जलके द्वारा पूजन करना मास आनेपर परमेश्वर श्रीविष्णुकी पूजा करनी चाहिये। कल्याणदायक माना गया है। माघ मास आनेपर नाना उस समय ऋतुके अनुकूल जितने भी पुष्प उपलब्ध हों, प्रकारके फूलोंसे भगवानकी पूजा करे। उस समय वे सभी श्रीमाधवको अर्पण करने चाहिये। तिल और कपूरसे तथा नाना प्रकारके नैवेद्य एवं लड्डुओंसे पूजा तिलके फूल भी चढ़ाये अथवा उन्होंके द्वारा पूजन करे। होनी चाहिये। इस प्रकार देवदेवेश्वरके पूजित होनेपर उनके द्वारा देवेश्वरके पूजित होनेपर मनुष्य अक्षय मनुष्य निश्चय ही मनोवाञ्छित फलोको प्राप्त कर लेता फलका भागी होता है। जो लोग कार्तिकमें छितवन, है। फाल्गुनमें भी नवीन पुष्पों अथवा सब प्रकारके मौलसिरी तथा चम्पाके फूलोंसे श्रीजनार्दनकी पूजा करते फूलोंसे श्रीहरिका अर्चन करना चाहिये। सब तरहके हैं, वे मनुष्य नहीं, देवता हैं। मार्गशीर्ष मासमें नाना फूल लेकर वसन्तकालकी पूजा सम्पादन करे। इस प्रकारके पुष्पों, विशेषतः दिव्य पुष्पों, उत्तम नैवेद्यों, धूपों प्रकार श्रीजगन्नाथके पूजित होनेपर पुरुष श्रीविष्णुकी तथा आरती आदिके द्वारा सदा प्रयत्नपूर्वक भगवान्का कपासे अविनाशी वैकुण्ठपदको प्राप्त कर लेता है।
कार्तिक-व्रतका माहात्म्य-गुणवतीको कार्तिक-व्रतके पुण्यसे भगवानकी प्राप्ति
सूतजी कहते हैं-एक समयकी बात है, देवर्षि निवेदन करनेके पश्चात् बैठनेको आसन दिया। नारदजीने नारद कल्पवृक्षके दिव्य पुष्प लेकर द्वारकामें भगवान् वे दिव्य पुष्प भगवान्को भेंट कर दिये । भगवान्ने अपनी श्रीकृष्णका दर्शन करनेके लिये आये। श्रीकृष्णने स्वागत- सोलह हजार रानियोंमें उन फूलोको बाँट दिया। पूर्वक नारदजीका सत्कार करते हुए उन्हें पाद्य-अयं तदनन्तर एक दिन सत्यभामाने पूछा-'प्राणनाथ !
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