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________________ उत्तरखण्ड ] . . नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन . ६९७ २६ निरालम्बः-आधारशून्य, स्वयं ही सबके सम्पन्न, ५३ सर्वसार:-सबके बल, ५४ आधार, २७ निलेपः-जलसे कमलकी भाँति राग- सर्वात्मा-सबके आत्मा, ५५ सर्वतोमुखः-सव द्वेषादि दोषोंसे अलिप्त, २८ निरवप्रहः-विघ्र- ओर मुखवाले, विराट्स्वरूप, ५६ सर्ववासः-सम्पूर्ण बाधाओंसे रहित ॥१२६ ॥ विश्वके वासस्थान, ५७ सर्वरूपः-सब रूपोंमें स्वयं निर्गुणो निष्कलोऽनन्नोऽभयोऽचिन्त्योऽचलोऽञ्चितः । ही उपलब्ध होनेवाले, विश्वरूप, ५८ सर्वादिः-सबके अनीन्द्रियोऽमितोऽपारो नित्योऽनीहोऽव्ययोऽक्षयः ।। १२७ ॥ आदि कारण, ५९ सर्वदुःखहा-सबके दुःखोंका नाश २९ निर्गुण:-सत्त्व, रज और तम-इन तीनों करनेवाले ॥ १२९ ॥ गुणोंसे रहित परमात्मा, ३० निष्कल:-अवयवशून्य सर्वार्थः सर्वतोभद्रः सर्वकारणकारणम् । ब्रह्म, ३१ अनन्तः-असीम एवं अविनाशी परमेश्वर, सर्वातिशयितः सर्वाध्यक्षः सर्वेश्वरेश्वरः ।। १३०॥ ३२ अभय:-काल आदिके भयसे रहित, ३३ ६० सर्वार्थ:-समस्त पुरुषार्थरूप,- ६१ अचिन्त्यः-मनको गतिसे परे होनेके कारण चिन्तनमें सर्वतोभद्रः-सब ओरसे कल्याणरूप, ६२ न आनेवाले, ३४ अचल:-अपनी मर्यादासे विचलित सर्वकारणकारणम्-विश्वके कारणभूत प्रकृति न होनेवाले, ३५ अक्षितः-सबके द्वारा पूजित, ३६ आदिके भी कारण, ६३ सर्वातिशयितः-सबसे सब अतीन्द्रियः-इन्द्रियोंके अगोचर, ३७ अमितः- बातोंमें बढ़े हुए. ब्रह्मा और शिव आदिसे भी अधिक माप या सीमासे रहित, महान्, अपरिच्छिन, ३८ महिमावाले, ६४ सर्वाध्यक्ष:-सबके साक्षी, सबके अपारः-पाररहित, अनन्त, ३९ नित्यः-सदा नियन्ता, ६५ सर्वेश्वरेश्वरः-सम्पूर्ण ईश्वरोंके भी ईश्वर, रहनेवाले, सनातन, ४० अनीहः-चेष्टारहित ब्रह्म, ४१ ब्रह्मादि देवताओंके भी नियामक ॥ १३०॥ अव्ययः-- विनाशरहित, ४२ अक्षयः-कभी क्षीण षड्विंशको महाविष्णुमहागुरो महाविभुः। न होनेवाले ॥ १२७ ॥ नित्योदितो नित्ययुक्तो नित्यानन्दः सनातनः ॥ १३१॥ सर्वज्ञः सर्वगः सर्वः सर्वदः सर्वभावनः। ६६ षड्विंशकः-पच्चीस' तत्त्वोंसे विलक्षण सर्वशास्ता सर्वसाक्षी पूज्यः सर्वस्य सर्वदा ॥ १२८॥ छब्बीसवाँ तत्त्व, पुरुषोत्तम, ६७ महाविष्णुः-सब ४३ सर्वज्ञः-परोक्ष और अपरोक्ष सबके ज्ञाता, देवताओंमें महान् सर्वव्यापी भगवान् विष्णु, ६८ ४४ सर्वगः-कारणरूपसे सर्वत्र व्याप्त रहनेवाले, ४५ महागुह्यः-परम गोपनीय तत्त्व, ६९ महाविभु:सर्वः-सर्वस्वरूप, ४६ सर्वदः-भक्तोंको सर्वस्व प्राकृत आकाश आदि व्यापक तत्त्वोंसे भी महान् एवं देनेवाले, ४७ सर्वभावन:-सबको उत्पन्न करनेवाले, व्यापक, ७० नित्योदित:-सूर्य आदिकी भाँति ४८ सर्वशास्ता-सबके शासक, ४९ सर्वसाक्षी- अस्त न होकर नित्य-निरन्तर उदित रहनेवाले, ७१ भूत, भविष्य और वर्तमान-सबपर दृष्टि रखनेवाले, नित्ययुक्तः-चराचर प्राणियोंसे नित्य संयुक्त अथवा ५० सर्वस्य पूज्यः-सबके पूजनीय, ५१ सर्वदृक्- सदा योगमें स्थित रहनेवाले, ७२ नित्यानन्दः नित्य आनन्दस्वरूप, ७३ सनातनः-सदा एकरस सर्वशक्तिः सर्वसारः सर्वात्मा सर्वतोमुखः। रहनेवाले ॥ १३१ ॥ सर्ववासः सर्वरूपः सर्वादिः सर्वदुःखहा ॥ १२९ ॥ मायापतियोंगपतिः कैवल्यपतिरात्मभूः। .. ५२ सर्वशक्ति:-सब प्रकारकी शक्तियोंसे जन्ममृत्युजरातीतः कालातीतो भवातिगः ॥ १३२॥ सबके द्रष्टा ॥ १२८॥ १. पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच इन्द्रियों के विषय, मन, पाँच भूत, अहंकार, महत्तत्त्व, प्रकृति और पुरुष (जीवात्मा)-ये पचीस तत्त्व है। इनसे भिन्न सर्वज्ञ परमात्मा छब्बीसवाँ तत्त्व है। इसीलिये इसे षड्विशक' कहा गया है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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