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________________ उत्तरखण्ड ] • वैष्णवोंके लक्षण और महिमा तथा श्रवणद्वादशी व्रतकी विधि और माहाल्य-कथा JANUNI महादेवजी बोले- भाद्रपद मासके शुरूपक्षमें जो श्रवण नक्षत्रसे युक्त द्वादशी होती है, वह सब कुछ देनेवाली पुण्यमयी तथा उपवास करनेपर महान् फल देनेवाली है। जो नदियोंके संगममें नहाकर उक्त द्वादशीको उपवास करता है, वह अनायास ही बारह द्वादशियोंका फल पा लेता है। बुधवार और श्रवण नक्षत्रसे युक्त जो द्वादशी होती है, उसका महत्त्व बहुत बड़ा है। उस दिन किया हुआ सब कुछ अक्षय हो जाता है। श्रवण द्वादशीके दिन विद्वान् पुरुष जलपूर्ण कलशकी स्थापना करके उसके ऊपर एक पात्र रखे और उसमें श्रीजनार्दनकी स्थापना करे। तत्पश्चात् उनके आगे घीमें पका हुआ नैवेद्य निवेदन करे; साथ ही अपनी शक्तिके अनुसार जलसे भरे हुए अनेक नये घड़ोंका दान करे । इस प्रकार श्रीगोविन्दकी पूजा करके उनके समीप रात्रिमें जागरण करे। फिर निर्मल प्रभातकाल आनेपर स्नान करके फूल, धूप, नैवेद्य, फल और सुन्दर वस्त्र आदिके द्वारा भगवान् गरुडध्वजकी पूजा करे। तदनन्तर पुष्पाञ्जलि दे और इस मन्त्रको पढ़े करनेमें असमर्थ हैं, उनके लिये कोई एक ही द्वादशीका पश्चिम भागमें मरु (मारवाड़) प्रदेश है, जो समस्त व्रत, जो पुण्यजनक हो, बतलाइये। प्राणियोंके लिये भय उत्पन्न करनेवाला है। वहाँकी भूमि तपी हुई बालूसे भरी रहती है। वहाँ बड़े-बड़े साँप हैं, जो महादुष्ट होते हैं। वह भूमि थोड़ी छायावाले वृक्षोंसे व्याप्त है। शमी, खैर, पलाश, करील और पीलू ये ही वहाँके वृक्ष हैं। मजबूत काँटोंसे घिरे हुए वहाँके वृक्ष बड़े भयङ्कर दिखायी देते हैं; तथापि कर्मबन्धनसे बँधे होनेके कारण वहाँ भी सब जीव जीवन धारण करते हैं। विद्वन्! उस देशमें न तो पर्याप्त जल है और न जल धारण करनेवाले बादल ही वहाँ दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसे देशमें कोई बनिया भाग्यवश अपने साथियोंसे बिछुड़कर इधर-उधर भटक रहा था। उसके हृदयमें भ्रम छा गया था। वह भूख प्यास और परिश्रमसे पीड़ित हो रहा था। कहाँ गाँव है ? कहाँ जल है ? मैं कहाँ जाऊँगा ? यह कुछ भी उसे जान नहीं पड़ता था। इसी समय उसने कुछ प्रेत देखे, जो भूख-प्याससे व्याकुल एवं भयङ्कर दिखायी देते थे। उनमें एक प्रेत ऐसा था, जो दूसरे प्रेतके कंधेपर चढ़कर चलता था तथा और बहुत से प्रेत उसे चारों ओरसे घेरे हुए थे। प्रेतोंकी भयानक आवाजके साथ वह नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंयुत । अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ॥ (७० | १०) 'बुधवार और श्रवण नक्षत्रसे युक्त भगवान् गोविन्द ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। मेरी पापराशिका नाश करके आप मुझे सब प्रकारके सुख प्रदान करें।' ६८९ तत्पश्चात् वेद-वेदाङ्गोके पारगामी, विशेषतः पुराणोंके ज्ञाता विद्वान् ब्राह्मणको विधिपूर्वक पवित्र अत्रका दान करे। इस प्रकार श्रेष्ठ पुरुष किसी नदीके किनारे एकचित्त होकर उक्त विधिसे सब कार्य पूर्ण करे। इस विषयमें जानकार लोग यह प्राचीन इतिहास कहा करते हैं—एक महान् वनमें जो घटना घटित हुई थी, उसका वर्णन करता हूँ; सुनो। विद्वन्! दाशेरक नामका जो देश है, उसके ***********
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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