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________________ • अर्जयस्व हुवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .. [संक्षिप्त पयपुराण . . . . . . . . . . . . .. यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य नारदजीने कहा-सुरश्रेष्ठ ! अब मेरे हितके खूब कसकर बाँधा और उसी अवस्थामें यमराजके पास लिये आप यमकी आराधना बताइये। देव ! किस पहुंचा दिया। मैं एक ही क्षणमें यमराजको सभामें उपायसे मनुष्यको एक नरकसे दूसरे नरकमें नहीं जाना पहुंचकर देखता हूँ कि पीले नेत्र और काले मुखवाले पड़ता। सुना जाता है--यमलोक वैतरणी नदी है, जो यम सामने ही बैठे हैं। वे महाभयङ्कर जान पड़ते थे। दुर्द्धर्ष, अपार, दुस्तर तथा रक्तकी धारा बहानेवाली है। भयानक राक्षस और दानव उनके पास बैठे और सामने वह समस्त प्राणियोंके लिये दुस्तर है, उसे सुगमताके खड़े थे। अनेक धर्माधिकारी तथा चित्रगुप्त आदि लेखक साथ किस प्रकार पार किया जा सकता है? वहाँ मौजूद थे। मुझे देखकर विश्वके शासक यमने अपने महादेवजी बोले-ब्रह्मन् ! पूर्वकालकी बात है, किङ्करोंसे कहा-'अरे ! तुमलोग नामके भ्रममें पड़कर द्वारकापुरीके समुद्रमें स्रान करके मैं ज्यों ही निकला, मुनिको कैसे ले आये? इन्हें छोड़ो और कौण्डिन्य सामनेसे मुझे ब्रह्मचारी मुद्गल मुनि आते दिखायी दिये। नामक ग्राममें जो भीमकका पुत्र मुद्गल नामक क्षत्रिय उन्होंने प्रणाम किया और विस्मित होकर इस प्रकार हैं, उसको ले आओ; क्योंकि उसकी आयु समाप्त हो कहना आरम्भ किया। चुकी है। यह सुनकर वे दूत वहाँ गये और पुनः लौट आये। फिर समस्त यमदूत धर्मराजसे बोले-'सूर्यनन्दन ! वहाँ जानेपर भी हमलोगोंने ऐसे किसी प्राणीको नहीं देखा, जिसकी आयु क्षीण हो चुकी हो। न जाने, कैसे हमलोगोंका चित्त भ्रममें पड़ गया?' ___ यमराज बोले-जिन लोगोंने 'वैतरणी' नामक द्वादशीका व्रत किया है, वे तुम यमदूतोंके लिये प्रायः अदृश्य हैं। उज्जैन, प्रयाग अथवा यमुनाके तटपर जिनकी मृत्यु हुई है तथा जिन्होंने तिल, हाथी, सुवर्ण और गौ आदिका दान किया है, वे भी तुमलोगोंकी दृष्टि में नहीं आ सकते। दूतोंने पूछा-स्वामिन् ! वह व्रत कैसा है ? आप उसका पूरा-पूरा वर्णन कीजिये। देव ! मनुष्योंको उस समय ऐसा कौन-सा कर्म करना चाहिये जो आपको संतोष देनेवाला हो। जिन्होंने कृष्णपक्षको एकादशीका व्रत किया है, वे कैसे पापमुक्त हो सकते हैं ? मुद्गल बोले-देव! मैं अकस्मात् मूर्छित यमराज बोले-दूतो ! मार्गशीर्ष आदि मासोंमें होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा था। उस समय मेरे सारे अङ्ग जो ये कृष्णपक्षको द्वादशियाँ आती हैं, उन सबमें जल रहे थे। इतनेहीमें यमराजके दूतोंने आकर मुझे विधिपूर्वक वैतरणी व्रत करना चाहिये । जबतक वर्ष पूरा बलपूर्वक शरीरसे खींचा। मैं अंगूठेके बराबर पुरुष- न हो जाय, तबतक प्रतिमास व्रतको चालू रखना शरीर धारण करके बाहर निकला; फिर उन दूतोंने मुझे चाहिये। व्रतके दिन उपवासका नियम ग्रहण करना
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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