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________________ उत्तरखण्ड ] ****** भगवान् गोविन्द मनुष्योंपर संतुष्ट होते हैं, वह ब्रह्मचर्य कैसा होता है ? प्रभो! यह बतलानेकी कृपा करें। महादेवजीने कहा- विद्वन्! जो केवल अपनी ही स्त्रीसे अनुराग रखता है, उसे विद्वानोंने ब्रह्मचारी माना है। केवल ऋतुकालमें स्त्रीसमागम करनेसे ब्रह्मचर्यकी रक्षा होती है। जो अपनेमें भक्ति रखनेवाली निर्दोष पलीका परित्याग करता है, वह पापी मनुष्य लोकमें भ्रूणहत्याको प्राप्त होता है। चातुर्मास्य व्रतकी विधि और उद्यापन • चौमासेमें जो स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय और देवपूजन किया जाता है, वह सब अक्षय होता है। जो एक अथवा दोनों समय पुराण सुनता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके धामको जाता है। जो भगवान् के शयन करनेपर विशेषतः उनके नामका कीर्तन और जप करता है, उसे कोटिगुना फल मिलता है। जो ब्राह्मण भगवान् विष्णुका भक्त है और प्रतिदिन उनका पूजन करता है, वही सबमें धर्मात्मा तथा वही सबसे पूज्य है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। मुने! इस पुण्यमय पवित्र एवं पापनाशक चातुर्मास्य व्रतको सुननेसे मनुष्यको गङ्गास्नानका फल मिलता है। नारदजीने कहा- प्रभो! चातुर्मास्य व्रतका उद्यापन बतलाइये; क्योंकि उद्यापन करनेपर निश्चय ही सब कुछ परिपूर्ण होता है। #510 महादेवजी बोले—महाभाग ! यदि व्रत करनेवाला पुरुष व्रत करनेके पश्चात् उसका उद्यापन नहीं करता, तो वह कर्मोके यथावत् फलका भागी नहीं होता। मुनिश्रेष्ठ ! उस समय विशेषरूपसे सुवर्णके साथ अत्रका दान करना चाहिये, क्योंकि अनके दानसे वह विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है। जो मनुष्य चौमासेभर पलाशकी पत्तलमें भोजन करता है, वह उद्यापनके समय ★ m ******* - घीके साथ भोजनका पदार्थ ब्राह्मणको दान करे। यदि उसने अयाचित व्रत (विना माँगे स्वतः प्राप्त अत्रका भोजन) किया हो तो सुवर्णयुक्त वृषभका दान करे। मुनिश्रेष्ठ! उड़दका त्याग करनेवाला पुरुष बछड़े सहित गौका दान करे। आँवलेके फलसे स्नानका नियम पालन करनेपर मनुष्य एक माशा सुवर्ण दान करे। फलोंके त्यागका नियम करनेपर फल दान करे। धान्यके त्यागका नियम होनेपर कोई सा धान्य (अन्न) अथवा अगहनीके चावलका दान करे। भूमिशयनका नियम पालन करनेपर रूईके गद्दे और तकियेसहित शय्यादान करे। द्विजवर ! जिसने चौमासेमें ब्रह्मचर्यका पालन किया है, उसको चाहिये कि भक्तिपूर्वक ब्राह्मण-दम्पतिको भोजन दे, साथ ही उपभोगके अन्यान्य सामान, दक्षिणा, साग और नमक दान करे। प्रतिदिन बिना तेल लगाये स्नानका नियम पालन करनेवाला मनुष्य घी और सत्तू दान करे। नख और केश रखनेका नियम पालन करनेपर दर्पण दान करे। यदि जूते छोड़ दिये हों तो उद्यापनके समय जूतोंका दान करना चाहिये। जो प्रतिदिन दीपदान करता रहा हो, वह उस दिन सोनेका दीप प्रस्तुत करे और उसमें घी डालकर विष्णुभक्त ब्राह्मणको दे दे देते समय यही उद्देश्य होना चाहिये कि मेरा व्रत पूर्ण हो जाय। पान न खानेका नियम लेनेपर सुवर्णसहित कपूरका दान करे। द्विजश्रेष्ठ इस प्रकार नियमके द्वारा समय-समयपर जो कुछ परित्याग किया हो, वह परलोकमें सुख प्राप्तिकी इच्छासे विशेषरूपसे दान करे। पहले स्नान आदि करके भगवान् विष्णुके समक्ष उद्यापन कराना चाहिये। शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान् विष्णु आदि अन्तसे रहित हैं, उनके आगे उद्यापन करनेसे व्रत परिपूर्ण होता है। ૬૮૩ लेकि ------
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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