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________________ ६७२ ****************** · अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • राजन् ! पूर्वकालकी बात है, सत्ययुगमें इन्द्रसेन नामसे विख्यात राजकुमार थे, जो अब माहिष्मतीपुरीके राजा होकर धर्मपूर्वक प्रजाका पालन करते थे। उनका यश सब ओर फैल चुका था। राजा इन्द्रसेन भगवान् विष्णुकी भक्ति में तत्पर हो गोविन्दके मोक्षदायक नामका जप करते हुए समय व्यतीत करते थे और विधिपूर्वक अध्यात्मतत्त्वके चिन्तनमें संलग्न रहते थे। एक दिन राजा राजसभामें सुखपूर्वक बैठे हुए थे, इतनेहीमें देवर्षि नारद आकाशसे उतरकर वहाँ आ पहुँचे। उन्हें आया देख राजा हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विधिपूर्वक पूजन करके उन्हें आसनपर बिठाया, इसके बाद वे इस प्रकार बोले- 'मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपासे मेरी सर्वथा कुशल 242053 है। आज आपके दर्शनसे मेरी सम्पूर्ण यज्ञ क्रियाएँ सफल हो गयीं। देवर्षे! अपने आगमनका कारण बताकर मुझपर कृपा करें।' नारदजीने कहा- नृपश्रेष्ठ ! सुनो, मेरी बात तुम्हें आश्चर्यमें डालनेवाली है, मैं ब्रह्मलोकसे यमलोकमें आया था, वहाँ एक श्रेष्ठ आसनपर बैठा और यमराजने मेरी भक्तिपूर्वक पूजा की। उस समय यमराजकी सभामें [ संक्षिप्त पद्मपुराण ........................ मैंने तुम्हारे पिताको भी देखा था। वे व्रतभंगके दोषसे वहाँ आये थे। राजन् ! उन्होंने तुमसे कहनेके लिये एक सन्देश दिया है, उसे सुनो। उन्होंने कहा है, 'बेटा! मुझे 'इन्दिरा' के व्रतका पुण्य देकर स्वर्गमें भेजो।' उनका यह सन्देश लेकर मैं तुम्हारे पास आया हूँ। राजन् ! अपने पिताको स्वर्गलोककी प्राप्ति करानेके लिये 'इन्दिरा' का व्रत करो। राजाने पूछा- भगवन्! कृपा करके 'इन्दिरा' का व्रत बताइये किस पक्षमें, किस तिथिको और किस विधिसे उसका व्रत करना चाहिये। नारदजीने कहा- राजेन्द्र ! सुनो, मैं तुम्हें इस व्रतकी शुभकारक विधि बतलाता हूँ। आश्विन मासके कृष्णपक्ष दशमीके उत्तम दिनको श्रद्धायुक्त चित्तसे प्रातःकाल स्नान करे। फिर मध्याह्नकालमें स्नान करके एकाग्रचित्त हो एक समय भोजन करे तथा रात्रिमें भूमिपर सोये। रात्रिके अन्तमें निर्मल प्रभात होनेपर एकादशीके दिन दातुन करके मुँह धोये; इसके बाद भक्तिभावसे निम्राङ्कित मन्त्र पढ़ते हुए उपवासका नियम ग्रहण करे अद्य स्थित्वा निराहार: सर्वभोगविवर्जितः । श्श्रो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥ (६० | २३) 'कमलनयन भगवान् नारायण! आज मैं सब 'भोगोंसे अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करूँगा । अच्युत! आप मुझे शरण दें।' इस प्रकार नियम करके मध्याह्नकालमें पितरोंकी प्रसन्नताके लिये शालग्राम शिलाके सम्मुख विधिपूर्वक श्राद्ध करे तथा दक्षिणासे ब्राह्मणोंका सत्कार करके उन्हें भोजन करावे। पितरोंको दिये हुए अत्रमय पिण्डको सूंघकर विद्वान् पुरुष गायको खिला दे। फिर धूप और गन्ध आदिसे भगवान् हृषीकेशका पूजन करके रात्रिमें उनके समीप जागरण करे। तत्पश्चात् सबेरा होनेपर द्वादशीके दिन पुनः भक्तिपूर्वक श्रीहरिकी पूजा करे। उसके बाद ब्राह्मणोंको भोजन कराकर भाई-बन्धु, नाती और पुत्र आदिके साथ स्वयं मौन होकर भोजन करे।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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